कारवां यादों का गुज़र गया कब का
ना जाने कयों एक
छोटी सी, याद रह गयी पीछे
बिछड़ी सी, सहमी सी
करती है इल्तज़ाह बस कुछ इतनी
छुपा लो तुम मुझे
इन बिखरे हुए ख्वाबों में कहीं
रो लूंगी इन सबके संग मैं
हंस लूंगी इन सबके संग मैं
बस रह लूंगी इन सबके संग मैं
ना करूंगी शिकायत कभी
ना होगा कभी शिकवा कोई
बस छुपा लो तुम मुझे
अपने आस पास यहीं कहीं
kaho kahan se churaya!
ना जाने कयों एक
छोटी सी, याद रह गयी पीछे
बिछड़ी सी, सहमी सी
करती है इल्तज़ाह बस कुछ इतनी
छुपा लो तुम मुझे
इन बिखरे हुए ख्वाबों में कहीं
रो लूंगी इन सबके संग मैं
हंस लूंगी इन सबके संग मैं
बस रह लूंगी इन सबके संग मैं
ना करूंगी शिकायत कभी
ना होगा कभी शिकवा कोई
बस छुपा लो तुम मुझे
अपने आस पास यहीं कहीं
kaho kahan se churaya!
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