जी भर के जिस रात हमने
तुमको नहीं कोसा हो
वो सुबह कैसे आये
भला रातों का क्या भरोषा हो

तुमसे आँख मिचौली जो न खेली
तो कहो कैसे, नींद आएगी
होगी मुकम्मल न जिंदगी
न आरज़ूएं ही सताएंगी

सब भूल मेरी ही है , जुर्माना भी मेरा
तुम कहोगे और चुपचाप मैं मान भी लुंगी
क्या लगता है तुमको, क्या ऐसे ही
इश्क की बाजी मैं, फिर हार लुंगी?

अब हुआ है तो हुआ है
ज़रा ज़ायका चखो तुम
पलकों न निगाहो में
दिल के कोने में रखो तुम

खामखा के इशारे और नूर ये तुम्हारा
होश किसको खबर क्या, शुरूर ये हमारा
कभी ख़ामोशी, कभी सरगोशी
लाइलाज़ , मुआं मर्ज़ अब हमारा

इश्क़ ऐसा जो हुआ अब
क्या दवा, क्या दुआ तब?
छोड़ दी है इस पतंग की
डोर हाथों में तेरे रब
डोर हाथों में तेरे रब

Comments

Popular posts from this blog

प्रेम है

Love is