प्रोपोज़
आज थोड़ा कुहासा सा है बाग़ में, फ़रवरी का महीना जो है. लेकिन इस ठंढ वाली भोर में हलकी सी ख़ुमारी भी घुली महसूस होती है. सूरज की किरणे बड़ी मुश्किल से इस कुहासे वाली भोर को धूमिल से जरा नारंगी और गुलाबी रंगने की कोशिश में हैं और ऊंघता हुआ गुलाब अब जाग रहा है.
ये वाला गुलाब जरा नीचे वाली में डाल पे खिला था , इसीलिए उसतक तो सूरज की किरणे वैसे भी नहीं पहुँच पाती. शयद इसीलिए ये थोड़ा रंग के मामले में भी मार खा गया और बाकी साथियो के तुलना में बढ़ भी न पाया. और तो और ऐसी जगह में फंसा पड़ा है की ज्यादा भवरे और तितलियाँ भी यहाँ नहीं फटकती।
उठ के करना ही क्या है, थोड़ी देर और सो लेता हूँ. सोचते हुए गुलाब फिर अपनी पंखुडिया थोड़े ढीली छोड़ ऊँघने लग गया.
पर बाग़ में होती चहलकदमी ने आखिर उसे फिर से जगा डाला. आज कुछ ख़ास है क्या?
उचक कर देखा तो भौचक्का रह गया.
कल तक तो सारी की सारी क्यारियां और उनमें पनपे हर पौधे की डाल गुलाबों से लदी पड़ी थी, कहाँ गयी सब की सब. बस मेरे जैसे कुछ यदा कदा फंसे वाले ही बच गए हैं और झुरमुटों से एक दूसरे को ताक रहे हैं आज? क्या हो गया बाग़ में? हज़ारो तो थे कल तक, हर रंग में इठलाते लहराते। मेरे बगल वाले दोनों क्यारियों में तो टुस्स लाल गुलाब थे , हाय अब तो ठूंठ सा लगता है बिलकुल. कौन कहेगा की ये गुलाब की क्यारियां हैं?
अब गुलाब के पास इतनी दिमागी ताकत नहीं की दो और दो पांच कर सके, निढाल सा हो गया अपने नए वातावरण से और अपने गाल टहनी पर रख चुप बैठा बस. गालों में २-३ कांटे चुभ रहे थे हमेशा की तरह, लेकिन ये तो गुलाब को तसल्ली से देते हैं अब तक अपने घर और डाली से जुड़े होने की.
हो क्या गया बाग़ में?
आज सुबह सुबह ही कॉलेज में छुट्टी हो गयी क्या? वैसे तो , ऐसे जोड़े अक्सर आ कर बैठ करते है इस बाग़ में। .ख़ास कर बरगद के नीचे वाले चबूतरे पर या फिर गंगा वाली घाट पर. कुछ को तो गुलाब ने नौका लेकर आर पार जाते भी देखा है. अब कॉलेज के पीछे ही तो है ये बाग़, तो ऐसे इंसानो का आना जाना सब नार्मल है गुलाब के लिए लेकिन आज कुछ ज्यादा लोग भी है और कुछ जल्दी भी.
अरे? तितली? मुझे देखा उसने? यहीं आ रही है।
और पल भर में ही ये पीले रंग की तितली पंख फैलाये गुलाब पर आ बैठती है. और गुलाब को जैसे अपने जीवन का सार्थक होना महसूस हो जाता है.
पहली बार गुलाब को यकीं होता है अपने गंध का, अपने रूप का और गौरव भी की वो भी किसी तितली की प्यास बुझा सकता है. अब ये तितली अपने पंखो, पैरो में लेकर उड़ जाएगी मेरा पराग और किसी न किसी डाल पर फिर से खिलने का कारण बनूँगा मैं.
तितली काफी देर बैठी रहती है गुलाब के पास, शायद इसीलिए की इतना पराग और किसी गुलाब में नहीं या इसलिए की बाग़ में आज कुछ ज्यादा गुलाब भी नहीं.
डाली में जरा झटका सा महसूर होता है , तितली उड़ जाती है और गुलाब देखता है अपने आपको काँटों , पत्तो और अपने घर से दूर होता। एक गहरी सांस लेकर गुलाब बिखेरता अपनी खुशबु, और तभी महसूस करता है जरा सी गर्म हवा. शायद इंसानो की सांस है ये, जो भर लेना चाहते है उसको खुशबु को इनमे. और उसने देखा है, कई बार ऐसा करने के लिए वो गुलाबो को डालियो से अलग करते ही हैं.
आंखे मुंद रही है गुलाब की, उसे पता है उसकी पंखुड़ियों में आने वाला निवाला अब डालियाँ पहुंचा नहीं पाएंगी। पंखुडिया धीरे धीरे सिकुड़ कर झड़ जाएँगी कुछ दिनों में पर तितली का उसके पास आना और छू कर चले जाना। ..सोच सोच कर मुस्कराता गुलाब अपनी खुशबु की आखिरी सांस भरता है, और जाते जाते सुनता है किसी को कहते.
विल यू बी माय वैलेंटाइन?
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