हाईवे से एयरपोर्ट का एग्जिट लेते ही, धक् से हो जाता है व्योम.
व्योम का भी कुछ छूटा जा रहा है आज. चाभी, वॉलेट, पासपोर्ट, लगेज, सब तो है ? है। सब है.
टाइम पे पहुँच भी जायेगा, सब कुछ जैसे प्लांड था वैसे ही है. बस इस छूटे जाने के एहसास को छोड़कर.
क्या कह रही थी वो? मैं कहाँ सुन पा रहा था जब वो कह रही थी, मैं तो बस देख रहा था उन होठों को खुलते बंद होते। मैं तो बस देख रहा था उन पलकों को उठते गिरते और मैं सुनता भी कैसे ? जब उसकी उंगलियां मेरे हाथो पे चहलकदमी किया करती है, मुझे कुछ सूझता कहाँ है और बस जी में आता है इनकी चहलकदमी को तभी का तभी अपनी मुठ्ठियों में कैद कर लूँ , इन होठों को वही रोककर अपनी पलकों से उसकी पलकें बंद कर के सुनु सिर्फ आती जाती साँसे।
सुनना तो दूर, क्या बोलता हूँ वो भी याद नहीं रहता. सच में? एक ही कहानी बार बार कहता हूँ क्या उसको? वो तो ऐसा ही बोल रही थी लेकिन मुझे कहाँ याद. हर बार नयी सी लगती तो है मुझे, जब भी कुछ कहता हूँ. वो सुन भी रही होती है, उसकी आँखों का इंतज़ार शायद मुझे कंफ्यूज कर देता है। .. की ये कहा भी था या नहीं? क्या फर्क पड़ता है, मुझे नहीं लगता की वो भी सुन पाती है सबकुछ, वरना ऐसे ही उसके चेहरे का रंग थोड़े ही धुप छाँव जैसा बदलता भला?
अरे यही तो पार्क करना था.
ड्राइवर को रोककर, सामान निकलता है और अपने गेट की ओर बढ़ता है.
“एयरपोर्ट पहुँच गया” - एक टेक्स्ट करता है चलते चलते.
जानता है, धरा हर घड़ी इंतज़ार में होती है। शायद सदियों से.
“चलो काफी टाइम है“
सामान चेकइन करके , सेक्यूरिटी की लाइन में है. काफी लम्बी लाइन है. उसके ठीक पीछे एक परिवार भी लाइन में है , शायद क्रिस्टमस की छुट्टियां मनाने कही जा रहा है. एक ५-६ साल की बच्ची अपना पिंक बैकपैक लिए उसकी मां की उंगली पकड़े चक्कर काट रही होती है. एक पल को उसका ध्यान उस बच्ची की ओर खिंचता सा है. मन ही मन पूछ बैठता है क्या इसे भी भिंडी पसंद नहीं होगी? अपने नासमझ से सवाल पर खुद मुस्कराता है और आगे बढ़ता है.
जूते , लैपटॉप, वॉलेट , फ़ोन वगैरह सब बैग बेल्ट पर रखता है और एक्स रे मशीन में जा खड़ा होता है.
सर
सर
तीसरी बार में उसका ध्यान जाता है, की सिक्योरिटी स्टाफ कुछ कह रही है.
योर स्कार्फ़
यस?
नीड तो टेक दाट ऑफ फॉर स्कैन
ओह , ये कैसे भूल गया.
उसे निकाल कर वापस बेल्ट पर रखता है, हाथ जरा सा थम जाते है. उसे शायद याद आ जाता है, की क्या छूट गया.
व्योम का भी कुछ छूटा जा रहा है आज. चाभी, वॉलेट, पासपोर्ट, लगेज, सब तो है ? है। सब है.
टाइम पे पहुँच भी जायेगा, सब कुछ जैसे प्लांड था वैसे ही है. बस इस छूटे जाने के एहसास को छोड़कर.
क्या कह रही थी वो? मैं कहाँ सुन पा रहा था जब वो कह रही थी, मैं तो बस देख रहा था उन होठों को खुलते बंद होते। मैं तो बस देख रहा था उन पलकों को उठते गिरते और मैं सुनता भी कैसे ? जब उसकी उंगलियां मेरे हाथो पे चहलकदमी किया करती है, मुझे कुछ सूझता कहाँ है और बस जी में आता है इनकी चहलकदमी को तभी का तभी अपनी मुठ्ठियों में कैद कर लूँ , इन होठों को वही रोककर अपनी पलकों से उसकी पलकें बंद कर के सुनु सिर्फ आती जाती साँसे।
सुनना तो दूर, क्या बोलता हूँ वो भी याद नहीं रहता. सच में? एक ही कहानी बार बार कहता हूँ क्या उसको? वो तो ऐसा ही बोल रही थी लेकिन मुझे कहाँ याद. हर बार नयी सी लगती तो है मुझे, जब भी कुछ कहता हूँ. वो सुन भी रही होती है, उसकी आँखों का इंतज़ार शायद मुझे कंफ्यूज कर देता है। .. की ये कहा भी था या नहीं? क्या फर्क पड़ता है, मुझे नहीं लगता की वो भी सुन पाती है सबकुछ, वरना ऐसे ही उसके चेहरे का रंग थोड़े ही धुप छाँव जैसा बदलता भला?
अरे यही तो पार्क करना था.
ड्राइवर को रोककर, सामान निकलता है और अपने गेट की ओर बढ़ता है.
“एयरपोर्ट पहुँच गया” - एक टेक्स्ट करता है चलते चलते.
जानता है, धरा हर घड़ी इंतज़ार में होती है। शायद सदियों से.
“चलो काफी टाइम है“
सामान चेकइन करके , सेक्यूरिटी की लाइन में है. काफी लम्बी लाइन है. उसके ठीक पीछे एक परिवार भी लाइन में है , शायद क्रिस्टमस की छुट्टियां मनाने कही जा रहा है. एक ५-६ साल की बच्ची अपना पिंक बैकपैक लिए उसकी मां की उंगली पकड़े चक्कर काट रही होती है. एक पल को उसका ध्यान उस बच्ची की ओर खिंचता सा है. मन ही मन पूछ बैठता है क्या इसे भी भिंडी पसंद नहीं होगी? अपने नासमझ से सवाल पर खुद मुस्कराता है और आगे बढ़ता है.
जूते , लैपटॉप, वॉलेट , फ़ोन वगैरह सब बैग बेल्ट पर रखता है और एक्स रे मशीन में जा खड़ा होता है.
सर
सर
तीसरी बार में उसका ध्यान जाता है, की सिक्योरिटी स्टाफ कुछ कह रही है.
योर स्कार्फ़
यस?
नीड तो टेक दाट ऑफ फॉर स्कैन
ओह , ये कैसे भूल गया.
उसे निकाल कर वापस बेल्ट पर रखता है, हाथ जरा सा थम जाते है. उसे शायद याद आ जाता है, की क्या छूट गया.
Comments