मर जाती है झूल कर
कोई मर जाती है भूल कर
वो कौन है ? वो है ही क्यों?
डर डर के भला, कैसे  जियूं

कब तक मैं गिन गिन सांस लूँ
कब तक चलूँ पग फूँक कर
कब तक करूँ मैं इंतज़ार
सबकुछ लुटा कर, सौंप कर

ये रात काली , काली ही है
कोई चाँद नहीं अब झांकता
इस बेबसी के दौर में
सन्नाटे ह्रदय फांकता

उसके चले जाने के बाद
आंसू बहाना, आसान है
जो ठान ले जीने की वो
तो फिर गले की फांस है

तो फांस बन , तू सांप बन
डस ले हरेक लाठी को तू
अब सब तमाशा हो चूका
तेरी जिंदगी और बाकी तू

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