वो कोरोना की वजह से
मीरा की कार हाईवे पर हवा से बातें कर रही है.
दोपहर में इस समय ज्यादातर सड़क खाली होती है और आज कुछ ज्यादा ही है. पर मीरा का सारा ध्यान कही और है।
जो भी हो, जीपीएस को देखती तो है पर साथ में आँखों से बहती लगातार अश्रुधार को बहने से रोक नहीं पा रही।
आज ऑफिस से जल्दी निकली क्यु की टीम के साथ एक इवेंट में जाना है. वहां जाकर सौ से ज्यादा लोगो के बीच खड़े होकर उसे बताना है अपने कंपनी के प्रोडक्ट के बारे में. लेकिन मन आज सुबह से ही बेचैन है. सबसे नजरे चुराकर निकली वो ऑफिस से , कही कोई साथ में न आने को कह दे. अगर ऐसा होता तो , ये जो कुछ लम्हे उसे मिल गए हैं कार में चुपचाप अपने आंसू बहाने , वो भी हाथ से निकल जाते।
उसे फिर से अपनी हिम्मत का मुखौटा पहन सबके सामने खड़े होना पड़ जाता। कार की तन्हाई में ही तो वो हर चेहरे उतार कर खुद से मिल पाती है।
समझ नहीं पा रही, आखिर अक्षर ने ऐसा क्यों किया उसके साथ।
क्या कभी माँगा मैंने कुछ उससे?
हमेशा उसके हिसाब से और उसके इर्द गिर्द मैंने अपनी दोस्ती और जरूरतों के दायरे बना तो लिए थे. जानती हूँ, किश्तों में ही प्यार की शर्त रखी थी उसने, और मीरा ने वो भी निःसंकोच मंजूर किया था। सोचा, दोष मेरा ही है या फिर हमारी किस्मतो का। गलत समय पर मिले हम , शायद ज्यादा देर हो चुकी थी. पर ठीक है, मिले तो. दिल को यह तसल्ली क्या काम थी?
अक्षर शादी शुदा है , परिवार है, बच्चे हैं। मेरे भी हैं , हाँ बस शादी की रस्म से जैसे मीरा ने अपने हाथ धो लिए हैं. पर उसने कभी नहीं कहा अक्षर से की मेरा साथ दो. कभी नहीं ठहराया अक्षर को अपने लम्बी तन्हाईयो की वजह या समाधान।
अब तो अपना मन नहीं मान रहा, की मैं निभाकर भी न निभाऊं। कसमकस की एक घडी में मैंने कुछ मुश्किल फैसले किये। आसान नहीं होता कुछ. आसान नहीं होता, अपने अंदर से १२ साल की स्मृतियों को खींच खींच कर उखाड़ना, उखाड़ती रहना. शायद सारी जिंदगी करती रहूंगी पर किया मैंने, उनके साथ मेरा भी कुछ हिस्सा निकल कर टूट गया, बहुत लहू बहा मेरे कलेजे का. पर मेरे पास दूसरा कोई चारा शायद न था, या तो फिर मैं मीरा ही न बचती।
हाँ, ऐसे कुछ दिनों में हो जाया करती थी मैं बेचैन।
कभी आधी रात में पूछ बैठती थी बेकार के सवाल, क्युकी उसके अटपटे जवाबो में ही मेरा मन हंसी ढूंढकर खिलखिला लिया करता था. एक दोस्त, एक हमदर्द, बस उतना ही. और कुछ भी नहीं।
उसने मुझसे बस मुँह नहीं फेरा बल्कि मेरे लिए वापसी के सारे रास्ते बंद कर दिए. यहाँ तक की अब मेरा नंबर ब्लॉक कर रखा है. उसे तो पता ही नहीं चलता अगर फेसबुक में सुझाव नहीं आता , अक्षर को दोस्त की लिस्ट में जोड़ने का. ये कब मेरा दोस्त नहीं था?
लेकिन क्यों भला? पिछले २ महीने में मैंने उसको होली की शुभकामना से आगे कुछ कहा भी नहीं. इसमें ऐसा क्या था ? क्या कर दिया ऐसा? खैर. इस दोस्ती के प्रस्ताव पर भी किया गया तिरस्कार थोड़ा चुभ गया. ६ साल पुरानी दोस्ती , जो हमेशा उसके ही हिसाब से निभी है इस तरह तोड़ी जाएगी। ... अंदाजा नहीं था मीरा को।
ऐसा भी नहीं की दोस्तों की कोई कमी है , लेकिन हर एक की अपने अपने अहम् जगहों पे रखती है मीरा. शायद यही भूल हो गयी उससे।
हाईवे आगे दो रास्तो में बँट रहा है , और मीरा कुछ सोच ही नहीं पा रही. रेडियो पर लगातार कुछ तो न्यूज़ में बोले जा रहे , स्कूल बंद करेंगे, ऑफिस बंद करेंगे , ये कोरोना वो कोरोना।
तभी अचानक ही फ़ोन बजता है, मीरा बिना कुछ सोचे हाईवे से बहार निकल जाती है. किसी अनजान कच्ची सड़क के पास है अब. गाड़ी खड़ी करके फ़ोन उठाती है।
उसकी १० साल की बेटी की आवाज दूसरे तरफ से आती है।
माँ , मुझे बहुत छींक आ रही थी मैथ की क्लास में। नर्स कहती है घर जाना पड़ेगा। तुम आओगी लेने? वो कोरोना की वजह से।
हाँ, मैं रास्ते में हूँ। बस बीस मिनट में आयी।
मीरा के जैसे रगों में जैसे बिजली चौंध जाती है , एक पल को वो सब भूल जाती है.
अपने बेटी के किसी तकलीफ की गुंजाइश और उसको मिटा देने का जज़्बा उसके हर दर्द से कही बड़ा और गहरा होता है , साथ ही उसके ज़ख्मो का मलहम भी बन जाता है।
अपने बोस को फ़ोन करती है की वो इवेंट में नहीं आ सकती. बेटी को लेने स्कूल जाना होगा। बॉस उसे एहतियात बरतने को कहता है, साथ ही बताता है की अभी अभी खबर आयी है , गवर्नर तो स्टेट में इमरजेंसी का एलान कर दिया है और इवेंट भी कैंसिल है।
गहरी सांस लेकर मीरा उसे धन्यवाद भी देती है और शुक्रिया अदा करती है अपनी किस्मत की उन लकीरो को जिसने उसे जीवन में कुछ क्या, अनगिनत अच्छे रिश्ते भी दिए हैं।
"भांड में गया तू अक्षर. बड़ा घर में छिपा बैठा है न? जा तेरे घर के सामने ही कोरोना की फौज आएगी. भाग कहाँ भागेगा"
खिलखिलाती है खुद ही। मन ही मन बात करती है अपने पुराने घनिष्ट मित्र से, जिसने उसे बिना कुछ पूछे और जाने पल भर में पराया कर दिया है. मीरा नहीं जानती ऐसा कैसे होता है. फिर क्या, आंसुओ को पोछते हुए मीरा जीपीएस में स्कूल का पता डालती है और बढ़ जाती है अपने कर्त्वयों को निभाने।
गाने तो अपने आप ही बज़ रहे है।
"लो सफर शुरू हो गया। "
(दोस्ती, रिश्तो और कर्तव्यों की जटिलता से जूझ रही एक एकाकी ह्रदय के अवस्था की लघु कथा जिसमे कोरोना का आगमन एक नया मोड़ देती है. )
Comments