हथेलियों की लकीरो में
जब भी हिना भरती हूँ मैं
अपने लबालब भरे हुए
दिल पे हाथ रखती हूँ मैं

एक बूँद भी तेरे इश्क़ की
छलक न जाये आँखों से
उड़ न जाये तेरी खुशबु
इन आती जाती सांसो से

क्या दिल मुझको समझाए
और मैं क्या इसको समझाऊँ
तेरे रंग में रंगी सांवरे
सारे जग पे , मैं वारी जाऊं

Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

प्रेम - तलाश ख़त्म

वट सावित्री