तन्हाई का आलम है अब
ख़ामोशियों का शोर
तू है नहीं, कहीं नहीं
फिर भी तुम्ही हर ओर

ये बेपनाह चाहत मेरी
यु ही घुटती है सीने में
जो तुझको सौंप दूँ, साजन
सांस आये, जीने में

मुहब्बत है मुहब्बत है
मुहब्बत है, सुना के नहीं?
तुम्हे अब भी शिक़ायत है
शिक़ायत क्यों? पता ही नहीं

बस एक बार, चले आओ
पटरी पे साथ मेरे चलने
कदम जो डगमगायेंगे,
हसेंगे गिर के सम्हलने में

निगाहों से निगाहों का सफर
तय कर के, निगाहों में
उंगलिया रस्ते भूले हो
सो जायें , हम जो बाहों में

हो झूम कर बारिश
बिजलियां चमके सारी रात
न तुम बोलो, न हम बोले
पर खत्म न ही हमारी बात









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