ऊंचा दरख़्त हैं
तो टिके रहिये
झंझावातो से
अभी जूझिये

टूटने की बात
अभी रहने दो
सूख जाने की?
बस कहने को

चिलचिलाती घूप
हो, बारिशें नदारत
तुमको तो बढ़ना है
यही है तुम्हारी किस्मत

नहीं करते तुम अफ़सोस
एक शाख टूट जाने की
नहीं बहा सकते आंसू
मौसमो के रूठ जाने की

आपकी शाखों पर
अभी घोंसले बनेंगे
छाया में कितने ही
थककर , बैठेंगे

बनेंगे कितने किस्से और
तुम्हें डटकर देखना है
युगों युगों तक तुम्हे
ये जंगल सींचना है 

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