काली रातों में बदरिया भी
ढाँप सोई है चंदनिया री
टिमटिमाते है तारे या जुगनू
रौशनी है खलबलायी सी

धक् से जी ये डोल उठता है
हाय तुम क्या द्वार आये हो
या फिर से ये कोई छलावा है
नैया मेरी मझधार लाये हो?

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