तसब्बुर में तुम्हारे , जी सुबह से शाम करती हूँ
यादों की, इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का अब काम करती हूँ
न लत लग जाए, बस तेरे एहसासों से मुहब्बत की
कही दिख जाओ और न पहचानूँ, यह सोच डरती हूँ
यादों की, इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का अब काम करती हूँ
न लत लग जाए, बस तेरे एहसासों से मुहब्बत की
कही दिख जाओ और न पहचानूँ, यह सोच डरती हूँ
Comments