बड़ा कहते थे , न होंगे नामो निशाँ मेरे
ताउम्र पड़े है, बस यादों के दरमियाँ तेरे
न अँधिया चली, न कोई बिजली गिरी
कब और कैसे जाने उजड़े, आशियाँ मेरे

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