उन्मुक्त एक विहंग
देखता है बैठ कर
पेड़ की उचाईयां
पर्वतों का सफ़र
घूँट भर की बारिशें
और भूख भर दाने
यथेष्ठ है इनके
पंखो को फड़फड़ाने
घोसलों का क्या है
हर आंधीयों में बिखर जायेंगे
हम तो चूमने बुलंदिया
बादलों में दूर, बड़ी दूर जायेंगे
देखता है बैठ कर
पेड़ की उचाईयां
पर्वतों का सफ़र
घूँट भर की बारिशें
और भूख भर दाने
यथेष्ठ है इनके
पंखो को फड़फड़ाने
घोसलों का क्या है
हर आंधीयों में बिखर जायेंगे
हम तो चूमने बुलंदिया
बादलों में दूर, बड़ी दूर जायेंगे
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