मिलकर जो उनसे, हम वापस घर आये
चेहरा हमारा जैसे कुच्छो भी कह रहा था
कभी हँसे ,कभी शरमाये ,और हद तो ये
की नाम से ही, टुस्स लाल हो गया था
अब कहो कैसे, ऐसे ऐसे हाल बेहाल छिपेंगे
भन्साघर से अंगना तक, प्रेम महक रहा था

Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

प्रेम - तलाश ख़त्म

वट सावित्री