कमसिन है वो क़ातिल
बड़ा मासूम सा ज़हर
जबसे उसकी गली घूमी
पराया हुआ शहर

न देखता है वो पलट के
न कभी पूछता है हाल
करूँ तो करूँ अब क्या
हरेक सवाल,बस सवाल

अंधियो सा वो आया
चला गया बवंडरों सा
तिनको से हम उड़े थे
बेग़ैरत, निकला दूसरों सा

ख़ुदा ख़ैर करे तेरी
हर दुआ में तू हो शामिल
तेरे दिल को वो सुकूं दे
जो अब हमको नहीं हासिल

शिकायत भी तुम्ही से
तुम्ही से है मुहब्बत भी
परवाह भी है तुम्हारी
और तुमसे ग़फ़लत भी

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