प्यास गले में रुकी रहे
जीने को इतना काफ़ी है
एक घूँट में कहीं बुझा दे
बड़ा बेरहम साकी है

पीकर हम तेरी आँखों से
बेसुध बहके डोलेंगे
कही गिर गए जो बाहों में
राज़ अनकहे खोलेंगे

इश्क़ सलामत रहे भले
ये धीरे धीरे क़तल करे
जिस्म ख़ाक पर रूहें अपनी
तरन्नुमों में वसल करे

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