अर्जुन १

अर्जुन १



रात भर नींद नहीं आयी आज ठीक से, पता नहीं कब फाइनली आँख लगी मेरी. इस टेंशन में की सुबह सुबह सूर्योदय के पहले कुरुक्षेत्र पहुंचना है.

देर रात , युधिष्ठिर और भीम के साथ बैठा योजनाओं पर ही डिस्कशन होती रही. कौरवो की सेना के आगे खड़े होना, कोई मजाक है क्या. अभी भी ३ ही बजे हैं. अर्जुन फ़ोन  में देखता है, और एक के बाद एक टेक्स्ट मेस्सगेस को प्रॉम्प्ट्स आने  लगते हैं.

अरे, कृष्ण का भी मैसेज था.

"गुड लक ब्रो , कल मिलते हैं.. बिग डे टुमारो."

ये जनाब रात हमारी स्ट्रेटेजी मीटिंग में भी न आये थे. बोले, हमें क्या , हम तो बस रथ हाँक रहे है। ये सब आपलोग देख ले। ग्वाला हूँ, हांकने में तो वैसे ही ट्रेंड  हूँ.

और सब ठहाके लगाने लगे थे. सबके सर पर मौत झूल रही है, और कृष्ण सबको हंसा कर निकल लिए.

ब्रश करते करते सोच रहे हैं अर्जुन, बंदा कमाल है लेकिन. देर रात बांसुरी की आवाज आ रही थी उसके कमरे से. बड़ा अच्छा बजाता है , शायद वही सुनते सुनते झपकी आ गयी थी मुझे.
चलो एक घंटे ही सही थोड़े रिलैक्स हो गया.

लगता है द्वार खुल गए हैं. घोड़े , हाथी वाली लाइन उप की आवाजे यहाँ तक आ रही है, पौ फटने में देर है अभी लेकिन सब कुछ ठीक चल रहा है. हम संख्या में कम सही, योद्धाओ और योजनाओ की कमी थोड़े है हमारे पास.

सोच में डूबा अर्जुन देख ही नहीं पता , कब द्रौपदी आके उसके पीछे आ खड़ी होती है. सामने आकर, अपनी बांहे अर्जुन के गले में डाल बस देख रही है. शायद थोड़ा सा भय भी है इनमे।

"अरे, क्या सोच रही हो। जिस अर्जुन के तीर से मछली के प्रतिबिम्ब वाली आँख नहीं बचती उसके निशाने में शक?"

अर्जुन थोड़ा करीब खिंच कर कहता है, उसके कानो में.

संकोच से थोड़ा और सिकुड़ जाती है वो, और भर भी जाती है उसकी बाहों में. यही तो बात लुभा लेती है अर्जुन को हर बार , आखिर कैसे ये एहसास एक ही जैसा है पहले दिन से.

कमाल है.
पर अगले ही पल, तुरंत सम्हल कर वापस हटकर खड़ी होती है द्रौपदी और आईने में देखता है अर्जुन , वापस वही चेहरा उसका। रोष से भरा, अपने खुले बालो को एक बार झटकती है और भर आता है उसकी आँखों में उगने वाले सूरज जैसे लाल प्रतिबिम्ब.

समझ जाता है अर्जुन, की वक़्त हो चला है.
द्रौपदी उसे थमाती तरकश, कश कर बांधती है उसकी पीठ और कमर पर. एक कठोर प्रण ले रखा हो जैसे , न एक शब्द कहती है न सुनने की अपेक्षा करती है.

अर्जुन दरवाजे की और बढ़ता है, जब नूपुरों की आवाज से गूंज पड़ती है और रोक लेती है उसके कदम कॉरिडोर के बीचो बीच. भागती हुयी सुभद्रा प्रवेश करती है और लगभग गिर पड़ती है, अर्जुन थाम लेता है समय पर.

धीरे से अपना सर उठाकर , तसल्ली करती है की अर्जुन ही है और खाली खाली आँखों से बस देखती है अर्जुन को.

अर्जुन सबकुछ पढता है कुछ क्षण के लिए और फिर उसे अपने से अलग करता, हँसते हुए, बोलते हुए चल देता है.

"अरे पगली, भैया होंगे न तेरे मेरे साथ. मुझे कुछ हुआ तो छोड़ना मत मेरे उस कमीने दोस्त को."

उसकी पीठ पर सजे धनुष को यकीं के साथ देखती है , मुस्कराती भी है और बह जाने देती है १-२ आंसूं.

कमरे में एक खास दूरी पर , बस बच गयी है अब द्रौपदी और सुभद्रा.

शब्द, सत्य और दुविधाएं बस बिखरी पड़ी है चारो और , कोई चुनने वाला नहीं.

बाहर दुदुंभियों की आवाज हुए तेज़ हो रही है.

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