सावली

सावली

चार भाईयों पर एक बहन, जब सावली का जनम हुआ तो सबने कहा की "चलो लक्ष्मी आयी है घर में". लेकिन सबकी भौहें उसके सांवले रंग से थोड़ी खींची सी रही.

पिताजी का रंग थोड़ा दब है, लेकिन माँ तो भक भक गोरी है और उसपर ही गए हैं चारो के चारो भाई.

खैर. नया बच्चा  वैसे भी कब सुन्दर हुआ है. दादी ही एक घर में थी, जो सिर्फ भृकुटि सिकोड़े न रही पर उसका नाम ही सांवली रख दिया. माँ, ने बड़े प्यार से हामी भर दी. वैसे भी किस घर में बेटी के आने पे खुशियाँ मनाई जाती है, यहाँ तो फिर भी सब खुश ही हैं.
दादी ने पहले ही कह दिया की, इसकी मालिश सरसों तेल से न करे. कहीं रंग और सावला न हो जाये. तो नारियल तेल को ही उपयुक्त माना गया. सांवली जन्म लेकर, पांच साल की हो गयी तबतक उसके रंग में कोई फर्क न पड़ा और दादी उसके बदलने की आस लिए ही स्वर्ग सिधार गयी.
लेकिन जाते जाते, पांच साल की सांवली को दादी एक उपहार जरूर दे गयी.

गंगाजल मुंह में जाने ले पहले बस इतने ही शब्द फूटे की "हाय कैसे ब्याह होगा इसका ?"

चिंता तो माँ को भी होती थी कभी कभी , लेकिन अपनी औलाद भी तो है. ऊपर से एकलौती बेटी। लाड़ की भी बड़ी इच्छा रहती घर में सबको , और जितना बन पड़े करते भी थे सब. खाकर पिताजी को सबसे दुलारी थी सावली. शाम में कुछ न कुछ लेकर आना, बाइक पे बिठा के मार्किट घुमाने चले जाना, और रात में सोती हुयी सावली को प्यार से निहारना , ये सब कुछ वो किया करते थे. बेटों से ज्यादा मान और प्रेम, और भाईयो को भी कोई ईष्र्या या स्पर्धा नहीं थी अपनी छोटी बहन से. भरपूर स्नेह केलर, सावली अपने घर में पल रही थी.

लगभग दस साल की उम्र से सावली का नियमित बेसन हल्दी इत्यादि का उबटन प्रारंभ कर दिया गया. सावली भी जतन से एक एक नियम को क्रमानुसार करती। सुबह ुठार उबटन लगाना, सूखने के बाद नहाना, स्कूल के पहले फेयर एंड लवली , शाम में मुंह धोकर नारियल तेल की मालिश और सोने के पहले दही से धोना.

पंद्रह सोलह की उम्र में सावली का रंग भले न निखरा, उसके पुरे वक्तित्व में निखार ज़रूर था.

माँ ने जब देखा की बड़े लड़के का एक दोस्त कुछ ज्यादा ही घर आने जाने लगा है , उन्होंने लड़को का घर पे आना बंद करवाया। साथ ही राहत की सांस भी ली की चलो बिटिया इतनी भी बुरी नहीं दिखती। पिताजी ने भी घुमाना फिराना काम किया और बारहवीं के बाद एक गर्ल कॉलेज में दाखिला कराना उचित समझा.

सावली का रंग उसके लिए एक बहुत ही बड़ा हथियार बना. वैसे तो उसे घर के हर औरतो की ठंढी आहे और सलाहें लगातार सुनने को मिली, लेकिन साथ में ये भी लगा की उसका जन्म सिर्फ किसी राजकुमार के लिए नहीं हुआ है. पढ़ाई लिखाई में ज्यादा ध्यान रहा शुरू से और चार बड़े भाई होने की वजह से मोहल्ले क्या शहर में कोई लड़का नहीं था जो हिम्मत करता उसके आस पास भी फटकने की. अगर किसी ने लाभ एक आध कामयाब कोशिश कर भी डाली तो सावली की एक कुंठा की कोई उसे क्यों चाहेगा भला, रोक देती कुछ भी महसूस होने से पहले.

बी ए करने सावली शिमला के कॉलेज जा रही थी, घर से दूर हॉस्टल में रहेगी अब तीन साल. शुरू से ही लिटरेचर का शौक था इसीलिए इंग्लिश होनोर्स पढ़ने का मन बना लिया उसने. घर में सबने उसकी लगन को ध्यान में रखते, कोई रुकावट भी न की. पैसो की भी कोई किल्लत न थी, और रवाना हो गयी सावली अपने एक नए सफर पे.

तीन साल के ग्रेजुएशन में सावली की काया  पलट हो गयी. छोटे शहर से आयी लड़की को काफी लड़कियों ने आड़े हाथो लिया और सावली ने भी डटकर सब कुछ का सामना किया. वहां से सिर्फ इंग्लिश होनोर्स ही नहीं बल्कि फैशन मेकअप और फर्राटेदार इंग्लिश बोलती सावली का अब सब दिल थाम में इंतज़ार कर रहे थे घर पर.

इसी बीच भाग्य से एक रिश्ते की खबर लेके घर आ गयी सावली की बुआ. अभी ६ महीने बाकि ही थे सावली ग्रेजुएशन में और वो छुट्टियों में घर आयी थी. लड़का भी आई ए अस है और दिल्ली में पोस्टिंग है उसकी. संजोग से वो भी घर आया हुआ था, बुआ के ससुराल के किसी रिश्ते में था इसीलिए सब खबर थी उनको. दो दिन लगतार बुआ लड़के के गुणों की झड़ी लगाती रही और साथ में दबे दबे ये भी कहती की लड़का ऐसा हीरा था की समय बर्वाद नहीं कर सकते थे. दान दक्षिणा की भी बात थी, जिसमे किसी को कोई ऐतराज नहीं था.

"ये सब तो समाज के नियम है और हम क्या समाज से बाहर है? वैसे भी बेटी को क्या ऐसे ही भेजेंगे , हम कंगले थोड़े ही हैं" , कहकर माँ ने बुआ को आश्वस्त किया.

 बात ये हुयी की एक बार लड़का लड़की को देख ले. लेकिन सबसे पहले दहेज़ का खुलासा किया गया, और फिर देखा सुनी की हामी दे दी गयी.

दो दिन बाद बड़ी मसक्कत से एक मंदिर में मिलने की बात थी. लड़का अपनी माँ और बहन के साथ आया था, शायद सावली के भैया पहले ही उनसे मिल आये थे.

जैसे ही सावली ने मंदिर के आँगन में कदम रखा, दूर चौबारे के पास खड़े परिवार को देख ही समझ गयी. मन बड़े असमंजस में था, जैसे जैसे वो एक एक कदम आगे बढाती ऐसा लग रहा था जैसे उसके जन्म के साथ कहे गए एक एक शब्द कानो में मेगा स्पीकर पर गूँज रहे हैं. क्यों भला? हाँ रंग थोड़ा गहरा है मेरा , लेकिन उसके साथ मुझमे भी कुछ कम गहराई नहीं। क्यों क्यों क्यों.?
देखते देखते, उसने आपने आपको इस नए परिवार के सामने खड़े पाया.

एक पल जैसे उसकी साँसे रुक गयी जब उसने देखा की परिवार में सबके चेहरे दूध से गोरे थे. अपनी माँ से दो कदम पीछे खड़ा एक लड़का तो जैसे कोई विष्णु की प्रतिमा सा लग रहा था. किसी ने अभी कुछ कहा नहीं लेकिन सावली को लगा जैसे अभी चक्कर खा के गिर जायेगी।

इतने में उसके कानो में मीठी सी आवाज ने शहद घोल दिया और अनायास ही सामने बढे हाथ को थामने के अलावा कुछ नहीं सुझा.

"हेलो , आय ऍम अनुराग "

होठो पे मीठी सी हंसी और आँखों की चमक , सावली साफ़ देख पा रही थी। 

उसने धीमे से हाथ मिलाया और नजरे झुका ली।

अनुराग की मां के चेहरे की ख़ुशी भी बिलकुल साफ़ थी.

"बेटी , बहुत सुना है तुम्हारे बारे में तुम्हारी बुआ से. तारीफ़ करते नहीं थकती तुम्हारी और कितने सुन्दर बाल है तुम्हारे। एकदम सरस्वती लगती है नहीं?" उन्होंने मुड़कर शायद अनुराग से कहा.

और बिना कुछ पूछे, अपने हाथ से कंगन उतार कर सावली के बाजुओं में डाल दिए. सावली की आँखों में कुछ भर सा आया, पर वो महसूस नहीं कर पा रही थी की यह सावली की हाथो की साथ में लगा अनुराग की मां के हाथों का रंग है या तेजी से उसकी और चली आ रही रिश्ते की डोर जिसमे वो बिना सोचे समझे बंधी सी जा रही है.

माँ और पिताजी के चेहरों पर दौड़ती ख़ुशी की लहर से पूरी तरह अवगत थी सावली.

"अरे चलो सब लोग दर्शन कर लेते है। बहुत ही ख़ुशी का दिन है आज. "

सब लोग आगे चल रहे थे , और अनुराग जान बूझकर कुछ कदम पीछे सावली से बस ६-८ इंच की दूरी पर.

प्रांगण में प्रवेश करते ही, एक औरत दौड़ते हुए आयी और अनुराग  की माँ के गले लग गयी। 

"अरे दीदी, तुम यहाँ ? अरे अनुराग भी आया हुआ है ?"

अनुराग ने झुक कर पाँव छुए, पर ऐसा साफ़ झलक रहा था की कोई इस आगंतुक के इस अचानक आगमन की अपेक्षा नहीं कर रहा था.

"ये अनुराग की मौसी हैं." कहकर अनुराग की माँ ने सावली की ओर देखा।

सावली ने भी पाँव छु लिए.

ये मौसी, देखने में ही बड़ी होशियार लग रही थी, एक पल में भांप गयी की मंदिर में क्या चल रहा था.

मंदिर के प्रांगण से ही लगा था गंगा का घाट तो दर्शन के बाद सभी सीढ़ियों से उतर रहे थे. अबतक अनुराग कुछ न कुछ, छोटी छोटी बाते लेकर टोक रहा था सावली को और वो जवाब भी दे रही थी. सभी बुजुर्गो ने घाट के ऊपर वाले सीढ़ियों पर ही कदम रोक लिए , अनुराग और सावली शायद उनको न देखकर बढ़ते चले गए पानी में पांव भिगोने।

अभी दो सीढिया नीचे आयी ही थी की सावली के कानो में टन्न से गिरी "क्या दीदी ? एकदम दिन रात? "

सावली और अनुराग दोनों के ने एक दूसरे की तरफ देखा। अनुराग की नजरो में आदर और प्रेम का मूक अस्वासन पढ़ा सावली ने और अगली सीढ़ी  अनुराग ने सावली का हाथ थम कर पार की. पलट कर नहीं देखा दोनों ने एक बार भी.

सावली ने जब अपने घागरे को ऊपर कर पानी में पांव डाले, और पास ही अनुराग के दो जोड़ी पैरो को देखा तो खिलखिला पड़ी.

"क्या हुआ? "

"सच ही तो, दिन और रात " - सावली ने उन पैरो की जोड़ी पर नजरें गड़ाए कुछ रूखी सी आवाज में कह डाला।

"लेकिन गंगा का पानी तो बराबर पवित्र कर रहा है इन्हे और शायद हमारा पथ प्रसश्त भी"

आँखे बंद कर सावली ने मन ही मन गंगा वंदना की और अपने जीवन के  निश्छल प्रेम को अनुराग को सौंपने का दृढ संकल्प ले अपने हाथो से गंगा का जल गंगा में अर्पित किया. मन ही मन शायद दादी को भी कह भेजा की, देख तेरी सावली को भी जीवन का अनुराग मिल गया.

सावली ने नहीं देखा की उसकी हथेली में भरने वाला एक मुठ्ठी पानी अनुराग की हथेली से बह कर आया था. 

Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

प्रेम - तलाश ख़त्म

वट सावित्री