"किसके इंतज़ार में बैठी हो"
चौंक गयी, मीरा। उसकी तंद्रा भी टूटी। न जाने कब से बैठी है पार्क के इस बेंच पर , और उसकी आधी सिगरेट घास में गिर कर कब की ठंढी हो गयी है.
क्षितिज उसके पास ही बैठ गया.
कोई कुछ नहीं कहता एक दूसरे को अगले कुछ पलों के लिए.
फिर अपने आप पर जैसे काबू कर लेती है मीरा और तपक कर अपने अंदाज में बोल पड़ती है.
"तुम्हारा तो बिलकुल भी नहीं"
दोनों ठहाके लगाकर हंस पड़ते हैं.
क्षितिज भी जानता है , बस इतना सा ही रिश्ता है उसका मीरा से. मीरा न जाने कैसे एक अनजान सी दीवार में घेरे रखती है हमेशा आपने आपको और उसको फांदने की कोशिश भी पूर्णतया व्यर्थ है ये अब तक में क्षितिज जान गया है.
मीरा ऑफिस की सबसे काबिल अफसरों में से एक है , क्षितिज जब आया था कंपनी में तो मीरा को शायद एक साल हो गए थे लेकिन एक ही साल में मीरा ने अपनी काफी धाक बना ली थी. क्षितिज अलग डिपार्टमेंट में है और अब तो काम के सिलसिले में कुछ भी वास्ता नहीं पड़ता मीरा से. शुरू में ही एक प्रोजेक्ट को लेकर उसने कुछ दिन मीरा के टीम के लोगो से बात की थी और भांप गया था उसके मन को.
मीरा के पर्सनल जीवन के बारे में कोई कुछ नहीं जानता ऑफिस में और क्षितिज भी नहीं। उसकी केबिन में कोई तस्वीर नहीं , न ही वो कभी छुट्टी लेती है और सुबह जल्दी आकर देर तक काम करना सब नार्मल है उसके लिए. ऐसा उसने शायद किसी भी महिला में नहीं देखा। लगभग सभी को अपने घर, परिवार, बच्चो इत्यादि को लेकर कुछ का कुछ हमेशा लगा रहता है लेकिन मजाल है मीरा को कोई पूछ भी ले. ऊपर से ऑफिस के पार्टी में बियर लेकर बैठना और स्टॉक मार्किट की डिस्कशन में सबको पीछे छोड़ देने वाली मीरा के साथ कभी कभी ऐसा लगता ही नहीं की वो एक औरत भी है.
ऑफिस के बाहर बेंच पर बैठकर सिगरेट पीना भी उसका कुछ नार्मल नहीं है , ऐसा पिछले पांच साल में कभी नहीं हुआ. जब क्षितिज ने देखा तो खुद को रोक न पाया। लगभग २० मिनट उसने पीछे खड़े उसके कांपते कंधो को देखा और जब आश्वस्त हो गया की उसने आंसू पोंछ डाले हैं तो उसे टोकने की हिम्मत की.
मीरा उठकर चल दी, बिना बाई बोले. क्षितिज के लिए ये भी कुछ नया नहीं है.
लेकिन तभी उसकी नजर आधे जले कागज़ के टुकड़े पर पड़ी। कुछ लीगल पेपर लग रहा था. कागज़ पूरा जला हुआ था , बस दो शब्द पढ़ पाया वो "प्लेंटीफ्फ मीरा बनर्जी ". उसने आस पास पड़े कुछ और पुर्जे बटोरे तो "कस्टडी ऑफ़ चिल्ड्रन " और "डिसॉल्व मैरिज " . क्षितिज समझ गया था की वो सिगरेट कोई लत नहीं, बस एक और पर्दा था इस पूरी घटना को एक और तह में छिपा देने का. माहिर है मीरा भी , लेकिन क्यों? क्यों जी रही है ये दोहरी जिंदगी.
क्षितिज का दिमाग घूम रहा था पर उसकी मजाल न थी की कुछ पूछ सके. वरना मीरा ये जो झूठ के ठहाके लगाती है , वो भी न बंद कर दे. कही कुछ पूछ बैठा तो केबिन से बाहर ही न निकले ये कभी अपने रिटायरमेंट तक.
उन पुर्जो को वही फेक, क्षितिज तेज़ कदमो से वापस ऑफिस के इंट्रेंस की और बढ़ने लगा. जानता है मीरा बहुत तेज़ चलती है, और उसे एलीवेटर में मिल पाए इसके लिए दौड़ना पड़ेगा। लेकिन वो अचानक रुक गया जब उसने देखा मीरा रुकी हुयी है घास पर , हाथ खोले। आसमान से इस मौसम की पहली बर्फ एक एक कर गिर रही है और वो आंखे बंद कर छू रही है उन्हें.
क्षितिज वही रुक गया , तबतक जब तक मीरा वापस चलने न लगी.
एलेवेटर में आते ही फिर से अपनी पुरानी मुस्कान थी मीरा के चेहरे पर.
"तो, बर्थ डे का क्या प्लान है?"
"क्यों मुझे मेरी उम्र गिना रहे हो , एक तो ऐसा दिन है मेरा बर्थ डे की कम्बख्त कोई भूलता ही नहीं "
"वो तो है, बड़ा ख़ास दिन है. हर तरफ छुट्टी का माहौल, रौनकें और इसबार तो व्हाइट क्रिसमस होगा लगता है "
"क्या बर्थडे, अब वो सब कुछ मायने नहीं रखता"
देखते देखते फ्लोर आ गया और मीरा अपने केबिन की ओर बढ़ गयी।
"बाय द वे , अगर चौबीस को ऑफिस आओगी तो बताना। .. लंच ही चलेंगे कम से कम "
हंसकर , आंखे घुमाकर, और "स्योर " कहती मीरा वापस गुम हो गयी थी अपनी दीवारों के पीछे। जहाँ से शायद उसको साक्षात कृष्ण भी अब नहीं निकाल सकते थे , मेरी क्या औकात थी.
चौंक गयी, मीरा। उसकी तंद्रा भी टूटी। न जाने कब से बैठी है पार्क के इस बेंच पर , और उसकी आधी सिगरेट घास में गिर कर कब की ठंढी हो गयी है.
क्षितिज उसके पास ही बैठ गया.
कोई कुछ नहीं कहता एक दूसरे को अगले कुछ पलों के लिए.
फिर अपने आप पर जैसे काबू कर लेती है मीरा और तपक कर अपने अंदाज में बोल पड़ती है.
"तुम्हारा तो बिलकुल भी नहीं"
दोनों ठहाके लगाकर हंस पड़ते हैं.
क्षितिज भी जानता है , बस इतना सा ही रिश्ता है उसका मीरा से. मीरा न जाने कैसे एक अनजान सी दीवार में घेरे रखती है हमेशा आपने आपको और उसको फांदने की कोशिश भी पूर्णतया व्यर्थ है ये अब तक में क्षितिज जान गया है.
मीरा ऑफिस की सबसे काबिल अफसरों में से एक है , क्षितिज जब आया था कंपनी में तो मीरा को शायद एक साल हो गए थे लेकिन एक ही साल में मीरा ने अपनी काफी धाक बना ली थी. क्षितिज अलग डिपार्टमेंट में है और अब तो काम के सिलसिले में कुछ भी वास्ता नहीं पड़ता मीरा से. शुरू में ही एक प्रोजेक्ट को लेकर उसने कुछ दिन मीरा के टीम के लोगो से बात की थी और भांप गया था उसके मन को.
मीरा के पर्सनल जीवन के बारे में कोई कुछ नहीं जानता ऑफिस में और क्षितिज भी नहीं। उसकी केबिन में कोई तस्वीर नहीं , न ही वो कभी छुट्टी लेती है और सुबह जल्दी आकर देर तक काम करना सब नार्मल है उसके लिए. ऐसा उसने शायद किसी भी महिला में नहीं देखा। लगभग सभी को अपने घर, परिवार, बच्चो इत्यादि को लेकर कुछ का कुछ हमेशा लगा रहता है लेकिन मजाल है मीरा को कोई पूछ भी ले. ऊपर से ऑफिस के पार्टी में बियर लेकर बैठना और स्टॉक मार्किट की डिस्कशन में सबको पीछे छोड़ देने वाली मीरा के साथ कभी कभी ऐसा लगता ही नहीं की वो एक औरत भी है.
ऑफिस के बाहर बेंच पर बैठकर सिगरेट पीना भी उसका कुछ नार्मल नहीं है , ऐसा पिछले पांच साल में कभी नहीं हुआ. जब क्षितिज ने देखा तो खुद को रोक न पाया। लगभग २० मिनट उसने पीछे खड़े उसके कांपते कंधो को देखा और जब आश्वस्त हो गया की उसने आंसू पोंछ डाले हैं तो उसे टोकने की हिम्मत की.
मीरा उठकर चल दी, बिना बाई बोले. क्षितिज के लिए ये भी कुछ नया नहीं है.
लेकिन तभी उसकी नजर आधे जले कागज़ के टुकड़े पर पड़ी। कुछ लीगल पेपर लग रहा था. कागज़ पूरा जला हुआ था , बस दो शब्द पढ़ पाया वो "प्लेंटीफ्फ मीरा बनर्जी ". उसने आस पास पड़े कुछ और पुर्जे बटोरे तो "कस्टडी ऑफ़ चिल्ड्रन " और "डिसॉल्व मैरिज " . क्षितिज समझ गया था की वो सिगरेट कोई लत नहीं, बस एक और पर्दा था इस पूरी घटना को एक और तह में छिपा देने का. माहिर है मीरा भी , लेकिन क्यों? क्यों जी रही है ये दोहरी जिंदगी.
क्षितिज का दिमाग घूम रहा था पर उसकी मजाल न थी की कुछ पूछ सके. वरना मीरा ये जो झूठ के ठहाके लगाती है , वो भी न बंद कर दे. कही कुछ पूछ बैठा तो केबिन से बाहर ही न निकले ये कभी अपने रिटायरमेंट तक.
उन पुर्जो को वही फेक, क्षितिज तेज़ कदमो से वापस ऑफिस के इंट्रेंस की और बढ़ने लगा. जानता है मीरा बहुत तेज़ चलती है, और उसे एलीवेटर में मिल पाए इसके लिए दौड़ना पड़ेगा। लेकिन वो अचानक रुक गया जब उसने देखा मीरा रुकी हुयी है घास पर , हाथ खोले। आसमान से इस मौसम की पहली बर्फ एक एक कर गिर रही है और वो आंखे बंद कर छू रही है उन्हें.
क्षितिज वही रुक गया , तबतक जब तक मीरा वापस चलने न लगी.
एलेवेटर में आते ही फिर से अपनी पुरानी मुस्कान थी मीरा के चेहरे पर.
"तो, बर्थ डे का क्या प्लान है?"
"क्यों मुझे मेरी उम्र गिना रहे हो , एक तो ऐसा दिन है मेरा बर्थ डे की कम्बख्त कोई भूलता ही नहीं "
"वो तो है, बड़ा ख़ास दिन है. हर तरफ छुट्टी का माहौल, रौनकें और इसबार तो व्हाइट क्रिसमस होगा लगता है "
"क्या बर्थडे, अब वो सब कुछ मायने नहीं रखता"
देखते देखते फ्लोर आ गया और मीरा अपने केबिन की ओर बढ़ गयी।
"बाय द वे , अगर चौबीस को ऑफिस आओगी तो बताना। .. लंच ही चलेंगे कम से कम "
हंसकर , आंखे घुमाकर, और "स्योर " कहती मीरा वापस गुम हो गयी थी अपनी दीवारों के पीछे। जहाँ से शायद उसको साक्षात कृष्ण भी अब नहीं निकाल सकते थे , मेरी क्या औकात थी.
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