पहचानोगे कैसे?

अच्छा, तो प्रेम की तलाश में हो तुम.

अब तलाश में हो तो कुछ आईडिया होगा की प्रेम कैसा होता है? कैसा दीखता है, कद काठी? रूप रंग ? या सिर्फ हिंदी सिनेमा से प्रभावित, गिटार के धुनों को रट कर निकल पड़े ढूंढने?

देखा जो तुझे यार, दिल में बजी गिटार?

रियलिटी चेक. गिटार नहीं बजेंगे। क्युकी वायलिन, पियानो या बांसुरी भी तो बज सकती है न? कोयल गा सकती है , अमावस में चाँद दिख सकता है, कुछ भी हो सकता है. इश्क है, कोई हलवा नहीं की चम्मच उठायी और चख ली, और हर दफा मीठी लगी.

तो अब मुद्दे की बात करे?

हाँ. तो , कैसे पहचानोगे प्यार ही है? अगर वो एकदम से सामने आ जाये? चाँद, बादल और बारिश में अच्छा खासा इंटरेस्ट भी हो. तुम्हारे  हिंदी गाने के मुखड़े में वो अंतरा मिलाये. इतना ही नहीं, नींद न आने की बीमारी भी हो?

उम्र , रंग और सोशल स्टेटस के इंची टेप निकाल बैठोगे क्या?

निकाल सकते हो, मुझे इन सबसे कोई आपत्ति नहीं, पर इन सबको निकालते निकालते कही ,प्रेम निकल लिया? तो हमें मत कहना.

अब हम कोई प्रेम के प्रकांड पंडित तो नहीं, पर जिंदगी जी है और थोड़ी बहुत गुजरते हुए महसूस भी किया है प्रेम को. तज़ुर्बे से कह रही हूँ , सुनना न सुनना तुम्हारी मर्ज़ी.
अब मान लो , कही अंदाजा होने लगे की शायद वही है. शायद यही है.
तो?
सबसे पहले, याद करो फ्लाइट में एयर होस्टेस क्या कहती है.
अपना ऑक्सीज़न मास्क पहले लगाए, उसके बाद दूसरे का. अब ये बात गाँठ बाँध लो. और भूलना नहीं कभी. क्युकी, प्रेम अगर सच में मिल जाए न तो ऐसा अक्सर हो जाता है की बंदा खुद दम घुट कर मर जाता है और प्रेम तो निकल लेता है , पतली गली.

बाक़ी बाद में, आज अब मूड नहीं है. 

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