दुर्गा
कब तलक बस घोषणा
होगी यहाँ संग्राम की
कब तलक चिंता करोगी
बैठी यहाँ परिणाम की
कब तलक बजती रहेंगी
दुदुंभिया, इस ओर से , उस ओर से
कब तलक प्रतिशोध की
ज्वालायें धधके, जोर से
कब तलक करती रहोगी
प्रार्थना और अर्चना
कब तलक उम्मीद से
टल जाएगी यह वेदना
अब बस हुआ, अब नहीं है
कोई रास्ता वापसी
अब नहीं, अब नहीं कोई
ये मामला आपसी
अब नहीं है डूबती
नैया कोई मझधार में
देख ले, जीवन प्रतीक्षा
कर रहा , उस पार में
नाव खेनी तो पड़ेगी
हैं काटना भी सर्प सर
एक बार तो अब, आज
अपने भी हठ पर गर्व कर
विश्वाश रख कोई नहीं जो
लड़ सके तेरे कर्त्वय से
है ये पृथ्वी कांपती
जो तू आ जाये, अपने सत्य पे
कैसी माया और कैसा मोह
अब किस बात का
साँच को अब आंच नहीं
अब अंत है इस रात का
है तुम्हारे हाथ में ही
तेरी किस्मत जान ले
प्रेम तुमने बहुत दिया
जा, महिषासुर की प्राण ले
उस दैत्य के अब प्राण ले
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