बस रौशनी

कौन कहता है 

झरोखे से उम्मीदे आएंगी 

कौन कहता है 

किस्मतें, आके जगायेंगी 

कौन कहता है 

की, बनेगी तकदीर अपने आप 

कौन कहता है 

जो जानो, खबर करना जनाब 


हम तो लपेटे बदन से ख्वाब के चीथड़े 

शर्मशार से, खुद को बचाये बैठे हैं 

ये लम्बी रात जब तलक न कटेगी 

सुबह की देहरि पे, जां लुटाये बैठे है 


लगाकर टकटकी, करते है इंतज़ार की 

एक सुबह आये 

उसके आने से पहले, न कहीं आँख 

ये छलक जाए 


बस रौशनी देखनी है 

मुझको जी भर के खुदा 

अब तो सबकुछ  

गवाए बैठे हैं 


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