कैसे बनके बदली 

बरस जाना चाहती हूँ 

तेरी आशिकी पी कर 

तरस जाना चाहती हूँ 

क्यों तू चुभता है अभी तक 

सीने में खंजर सा 

दर्दे इश्क़ की चिता में 

सुलग जाना चाहती हूँ

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