मेरी बात करो न 

क्युकी मैं भी तुम्हारी कर रही हूँ 

इसकी उसकी 

यहाँ की वहां की 

सारे जहाँ की 

मुझे क्यों सुना रहे हो 

मुझसे शिकायत है तो कहो 

क्युकी मुझे तो तुम्ही से है 

नहीं सुनोगे? 

मत सुनो. 

पर मैं कहती रहूंगी 

पर मैं लिखती रहूंगी 

होते रहेंगे वार्तालाप 

मेरे और तुम्हारे न सुनने के बीच 

बनते रहेंगे तिनकों के पहाड़

अनकहे अनसुने शब्दों के 

और एक दिन क्या होगा पता है? 

मैं इन तिनकों के पहाड़ को 

हवन कर के , बढ़ जाउंगी 

फिर तुम सुनते रहना 

राख में बुझती चिंगारिया 

फिर तुम चुनते रहना 

मेरे अरमानो की जली हड्डियां 

जानते नहीं क्या? मैं हाड मांस की कहाँ 

ख्वाबो, अरमानो और ज़ज़्बातो से ही तो बनी थी 

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