शब्द
शब्द
उड़ रहे हैं
बह रहे है
हो रहे हैं तितर बितर
यहाँ वहां इधर उधर
कुछ कहे हुए कुछ सुने हुए
कुछ लिखे तो कुछ मिटे हुए
रख लूँ किसे
किसे जाने दूँ
और जो दस्तक दे रहा
उसे क्या आने दूँ?
कोई भागता है टोककर
कोई नापता है सोचकर
शब्द कोई है ठहरा हुआ
इस कान से बहरा हुआ
कोई पूछता है मेरी वजह
कोई देखता है बेवजह
शब्दो की जंजाल में
फंस गयी मायाजाल में
डूबूं अब यहाँ या उतरूं मैं
सोचती हूँ अब, सुधरूँ मैं
ये तो हैं सदा से बावले
इन्हे बाँध कर, क्यों रखूँ मैं
कोई शब्द बैठा सी रहा
हर घाव इस जज़्बात पे
बखिये उधेड़े और कई
वो शब्द, हर एक बात पे
कोई सींचता बन बागवा
क्यारी डालिया हैं लद गयी
शब्द से दिल ही नहीं
अब निगाहें भी भर गयी
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