इबादत 


कहता है कहानी

बहता हुआ पानी 

थोड़ा सा है समय 

सफर कहाँ आसानी 

वही जो रुकते हैं नहीं 

इठलाते है लहरों पे 

उम्मीदों के उजालों से 

सुलगाते हैं चेहरों पे 

है इतना, और कितना 

भला मांगू ख़ुदा से मैं 

झुकाकर पलकें बस पालूँ 

तुम्हे , अब हर दुआ में मैं 


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