मर्यादा
मीरा की छाती धौंकनी सी चल रही हैं, टांगो के बीच है फंसा एक यन्त्र और स्क्रीन पर नजरे टिकाये नर्स.
जिसका डर है, वही बात है. मीरा की ही धड़कनो की एक प्रतध्वनि से कमरा गूँज उठा है.
बधाई हो , बिलकुल नार्मल और हैल्थी प्रेगनेंसी है
धड़कने और तेज़, गर्दन टेढ़ी कर स्क्रीन पर देखती है. एक काला धब्बा छोटा बड़ा हो रहा है , कुछ अंक इर्द गिर्द डूब उभर रहे हैं।
कौन है ये ? इसको जीवन कहूँ या नहीं ?
ह्रदय विचलित है और आंखे भर भर उलझ रही है। नर्स चुपचाप अपना काम कर रही है , उसकी तो दिनचर्या है। २ घंटे के बाद मीरा का नम्बर आया था , उसके पहले न जाने कितने और शरीर और कितनी और धड़कनो की चित्र आंक चुकी है आज ये मशीन.
किर्र किर्र की आवाज और मीरा के हाथ में एक तस्वीर थमा देती है. मीरा अनायास उसे ले लेती है.
अब आप चेंज कर लीजिये और डॉक्टर से मिल लीजिये।
मशीन अब नहीं है टांगी के बीच लेकिन और भी बहुत कुछ तो है ?
क्या करूँ ? कैसे कहूँ ?
उसने तो कह ही दिया था, उसी दिन.
" जाओ देख लो, जो करना है. "
इको होती रहती हो वो ठंढी आवाज और उसका किया एक फैसला मीरा के ज़ेहन में..
" मुझे ये प्रेगनेंसी टर्मिनेट करनी है. "
मीरा सधी हुयी आवाज़ में कहती है.
डॉक्टर उसे २ ऑप्शन समझाता है. चूँकि ये बहुत ही अर्ली है, टेबलेट खाना है बस. लेकिन एक अभी उसी समय और दूसरी घर जाकर २४ घंटे बाद.
इस टेबलेट से तुम्हारी प्रेगनेंसी यूटेरस के वाल से अलग होने लगेगी और बाद वाली टेबलेट सेफ्ली फ्लस कर देगी. घर में कोई है ?
नहीं, क्यों?
तो कोई बात नहीं। लेकिन एक बार ब्लीडिंग शुरू हो तो ब्लड प्रेसर नीचे जा सकता है , और दर्द के लिए ये गोलियां ले लेना, लिख देता हूँ ।
२० मिनट मीरा गोली लेके बैठी है , निगलू या उगलू ? एक बार पूछ लेती उसको? कहीं मन बदल जाए ?
न , अभी कहाँ फ़ोन लेगा मेरा, मीटिंग के बीच.
आंखे आंसू घोंट लेती है और मीरा एक गोली. दूसरी को लेकर पर्स में रखती है,
"थैंक्स डॉक्टर. "
" टेक केयर "
फ्रंट डेस्क में पेमेंट करके कार में बैठ तो गयी है. लेकिन जाये कहाँ ? घर?
फ्रंट मिरर एडजस्ट करके अपना चेहरा देखती है, खून जैसे सूख गया है सारा.
"कातिल हो क्या तुम?"
आइना कहता है और चीख निकल पड़ती है. चीखती जाती है मीरा न जाने कब तक, तब तक जब तक उसकी आवाज बंद नहीं हो जाती.
किसी तरह घर पहुँचती है , थोड़े देर में स्कूल बस आने वाली है. अब ऐसे शकल नहीं बना के बैठ सकती मैं न.
बस से उतरते ही यश की बांछे खिल जाती है माँ को देख कर और हमेशा की तरह भाग कर आता है और उसकी बांहो में भर जाता है।
ममता से भरा मन और साथ में गर्भ में धीरे धीरे धीमी पड़ती धड़कने एक साथ झिझोड़ देती है मीरा को.
"तुम होमवर्क करो, मैं अभी आयी"
"पिया , तुम घर पर हो क्या? मैं आ जाऊं? "
पिया बहुत पुरानी सखी और पड़ोसन है मीरा की, उसकी आवाज से ही भांप लेती है उसके मन की स्थिति
"अरे आओ न"
किसी तरह घुसती है पिया के घर और सीढ़ियों पर ही टूट कर बिखर जाती है मीरा.
पिया चुपचाप उसके पास बैठी है , कैसे सम्हाले , क्या बोले? कितने ही लम्हे ऐसे निकल जाते हैं
"अब चलती हूँ "
शाम, रात जैसे तैसे कटती है. कोई कुछ नहीं पूछता है मीरा से और मीरा के पास भी कुछ नहीं बोलने को.
सुबह दूसरी गोली लेनी है , बस यही ख़याल लिए रात भर सोने का नाटक करती है. मेरे अंदर होने वाली एक और धुक धुक क्या हलकी हो रही है ? न आंखे सोती है न रोती हैं.
दिनचर्या जैसे तैसे हो जाती है, पती बच्चे अपने अपने जगह के लिए जा चुके हैं .
घर में अकेली मीरा अनंत में खोयी बैठी है जब अचानक हज़ारो छुरियां जैसे एकसाथ घुस जाती है उसके गर्भ में और चीख उठती है मीरा। खून का एक तेज़ बहाव उसके सारे कपड़ो के पार हो जाता है और छुरिया जैसे ताबड़तोड़ बरस रही है. मीरा की चीखों से पूरा घर गूंज रहा है पर आवाज उसके गले से निकलती है और फिर दीवारों से टकराकर बस , उसके कानो तक वापस आ जाती है।
कुछ होश और कुछ बेहोशी में वो पिया का नंबर मिलाती है , आवाज बंद है पर पिया जानती है.
"कुछ ही मिनटों में आ रही हूँ, सांस लो ठीक है। .. अभी आयी"
पिया आकर उसे बाथरूम ले जाती है , मीरा के इशारे पर उसे अकेले ही छोड़ देती है कुछ देर.
मीरा हताश सी खून के बहते थक्को को देख रही है. तभी याद आता है की उसके स्वेटर की पॉकेट में अल्ट्रा साउंड की तस्वीर भी मौजूद है.
मिला रही है , क्या ये एक बनने वाले शरीर का हिस्सा था ? कौन सी कोशिका हाथ पैर या ह्रदय बनती , कौन जाने? कौन बताएगा ?
चाकू सिर्फ गर्भ ही नहीं , ह्रदय को भी छलनी किये जा रही है, लेकिन चीखों की कोई पहचान कहाँ होती है , आंसुओ का कोई रंग कहाँ होता है और लहू ? औरत के लहू की कोई मर्यादा कहाँ होती है?
नहीं जानती क्या , आये दिन तो पड़ोस की बुआ रिक्शा पकड़ के लेडी डॉक्टर के पास से हो आती थी. कुछ ऐसी ही वजह हुआ करती थी , ऐसा ही कुछ कहती थी उसकी पक्की सहेली।
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