भक्ति और श्रृंगार लिखेंगे


हम न थे तो आवाज थे 

युगों युगो भी , आवाज रहेंगे 

जो लब कभी खुल के कह न सके 

वो धड़कनों के आज अल्फ़ाज़ कहेंगे 


कौन रोक सकता है भला 

इन अरमानो के दरिया को 

अँधियो से, बाढ़ बनकर 

हम होकर एक गुमराह, धार बहेंगे 


मुहब्बत होती है एक बार 

तो फिर बदलती कहाँ कभी 

जो मौसमो सा बदल जाए 

उससे क्या ख़ाक कहेंगे ?


उम्मीदों के रंगो ने बेरुखी कर ली 

बेरंग आरजुओं ने भी ख़ुदकुशी कर ली 

रंगरेज़ सुन ले, अब तेरे ही रंग में 

कम्बख्त दिल का हर एक तार रंगेगे 



रुसवाई का अब क्या ख़ौफ़ 

और क्या तन्हाईयो से डर 

रूप मीरा का धर  के कृष्ण 

जब भक्ति और श्रृंगार लिखेंगे  


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