जब दूर थे 

अनजान थे 

तो खास थे 

गुमनाम से 


पास आते ही 

कुछ पाते ही 

थे दरम्यां 

एहसास से 


पर अब नहीं 

खोये कही 

वो आरज़ू 

चुपचाप से 


 तय तो कर लेंगे सफर , हम तनहा भी मगर 

ए जिंदगी तू साथ होती, फिर बात ही क्या थी 

जो रोशन इन दिलो की आग से होती 

हो कितनी भी अँधेरी ,फिर वो रात ही क्या थी 


नज़रअंदाज कहकर बस हमी को ही ,तुम पिया

देखो ना 

तुम्हारे नाम से हमको अभी तक है देखती दुनिया

देखो ना 

तुम्हारे नूर से ही तो है रोशन, जहाँ मेरी उम्मीदो की  

आये हो बनकर बारिशों से, तो जी भर भीगते हैं आज 

देखो ना  


अभी मैं जरा जरा सी टुकड़ो में बंटी हूँ 

एक हिस्सा अतीत में और कल में भी हूँ 

गुजर कर ठहर गया, फिर कहीं गया ही नहीं

उस पिघले से और जमे हुए , पल में भी हूँ 




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