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 रहने दो कायदों की कैद  अब तुम ज़माने के लिए  लो पलके झुका ली तेरी आँखों में समाने के लिए  
ये है इंतज़ार की किस्मत  नहाकर इश्क़ में हम तुम  न ही डूबे , न ही उतरे  न लग पाए पार अब हम तुम  यु ही सुलगो ,मगर न जलो  नहीं  बुझने वाली ये कभी  हवाएं साँसों की जबतक  रहेगी आंच , ये हम तुम  नहीं इन लब्ज़ो की मंजिल है न ही वो दिल को हासिल है  इधर चुभती हुयी सी आस  उधर एक यार, गाफिल है  है अगर इश्क़ तो मेरे बाद  एक ईमारत लब्जों की मेरे  बनाकर, सफ़ेद सी मेरे यार  कभी, सजदे कर लिया करना  - ताजमहल  न तब थी मेरे बस में  न अभी है , हाय मेरा ये दिल  हैं जब तन्हाईयों की मंजिल  यही आकर, तू मुझसे मिल  जब हम किसी को खोने के डर से सच नहीं बोल पाते  हम तो स्वतः उसे खो चुके होते है, बस मान नहीं पाते.  वही जलता है सीने में  वही दिल का शुकुन भी है  जहा ठहर जाते है जाकर  कम्बख्त, वही मेरा जुनूँ भी है  क्या तुम्ही थे कृष्ण की मूरत  क्या सांवली सी थी वो सूरत  धुनकी में बस लिखी जा रही हूँ  कब हो, कब हो दर्शन की महूरत न जो बोलोगे तो भी हम बोलेंगे  न जो देख...