ये है इंतज़ार की किस्मत
नहाकर इश्क़ में हम तुम
न ही डूबे , न ही उतरे
न लग पाए पार अब हम तुम
यु ही सुलगो ,मगर न जलो
नहीं बुझने वाली ये कभी
हवाएं साँसों की जबतक
रहेगी आंच , ये हम तुम
नहीं इन लब्ज़ो की मंजिल है
न ही वो दिल को हासिल है
इधर चुभती हुयी सी आस
उधर एक यार, गाफिल है
है अगर इश्क़ तो मेरे बाद
एक ईमारत लब्जों की मेरे
बनाकर, सफ़ेद सी मेरे यार
कभी, सजदे कर लिया करना
-
ताजमहल
न तब थी मेरे बस में
न अभी है , हाय मेरा ये दिल
हैं जब तन्हाईयों की मंजिल
यही आकर, तू मुझसे मिल
जब हम किसी को खोने के डर से सच नहीं बोल पाते
हम तो स्वतः उसे खो चुके होते है, बस मान नहीं पाते.
वही जलता है सीने में
वही दिल का शुकुन भी है
जहा ठहर जाते है जाकर
कम्बख्त, वही मेरा जुनूँ भी है
क्या तुम्ही थे कृष्ण की मूरत
क्या सांवली सी थी वो सूरत
धुनकी में बस लिखी जा रही हूँ
कब हो, कब हो दर्शन की महूरत
न जो बोलोगे तो भी हम बोलेंगे
न जो देखोगे तो भी हम दिखेंगे
अब तो लगी तुम्ही से ये लगन
अब तो भई मीरा तेरी ही जोगन
तेरे सोने पे जगे, अब जागे ही सोयेंगे
कैसा तू निर्मोही, जो ऐसे मुझको सताये
क्यों पहले मीठी बोलियों से ऐसे रिझाये
जब रोम रोम तक मैं हूँ भींग गयी
तू दूर दूर से अब अठखेलियां बुझाये
कैसा तू निर्मोही, जो ऐसे मुझको सताये
चले जाओगे तो जाओ
हम अब कहाँ छूट पाएंगे
आप कितना भी चाहें
हमसे नहीं रूठ पाएंगे
पक्का रंग प्रीत का
बह ले कितनी भी आंधी
तेरे इश्क के घरोंदे
न जी न, अब न टूट पाएंगे
ये जो ख़यालो की ऊँगली पकड़
हमें अपने साथ कहीं ले चले हो
यहाँ से कितना और कैसे
वो भी अब तुम ही तय करो
हमें न सफर न मंजिलों की फ़िक्र
जहां तक निगाह हो, बस हमसफ़र रहो
जानती हूँ, मैं जिम्मेदार हूँ
जरा सी इस हालात की तेरी
मानती हूँ, में हिस्सेदार हूँ
अब, सुबह और रात की तेरी
जवाब यु तो नहीं है मेरे पास
पर सवालों से थकती नहीं हूँ मैं
उम्र की हद तय कर पायेगा कौन
बेइंतहां मेरी और बात की तेरी
सितम आपके है ये
या हमने ख़ुद ही ढाये हैं
रिश्ते मजबूर से दिल के
क्या आपने निभाए हैं?
है आरज़ू उनकी और
हम ख़ुद से पराये हैं
तू जुनूँ भी
तू शुकूं भी
ख्वाबों में चलती जाऊं
फिर, तेरे सीने में रुकूँ भी
न रातें हिज़्र की कटेंगी
न ख़त्म होंगी बेकरारियाँ
तू भी तो नहीं हासिल तन्हाईयो का फिर
या खुदा, इस मर्ज़ की दवा क्या है?
खुद से मुझको उम्मीदें हैं
हैं खुद ही से मेरे सपने
यु बस हंस के थाम ले
कहाँ है मेरे वो अपने
रहे हैं और रहेंगे , इन दिलो में ख्वाब सिंदूरी
काग़ज़ की सरहदें पर दिलों में कौन सी दूरी
एक तुम बस एक मैं, और ख़ामख़ा के रिश्ते
लो देखो हो गयी यहीं अपनी ये क़ायनात पूरी
कुछ नहीं करने को साबित
अब रहा
मैं हूँ, तुम हो,
इश्क़ सच्चा
वो होगा तो, होगा बड़ी सिद्दत से
वरना, जनाब ये तो बस एक नशा
आप मजबूर, किसी की आदत से
एहसास, वो भी इतने सारे
कमीने, आते कहाँ से है?
आख़िर बुलाया किसने इन्हे?
मुंह उठाये चले आ रहे है.
वो भी, बिना परमिसन !
जो सच ही कहते है
उनसे सौ दफ़ा पूछना
इस उम्मीद से की
जवाब बदल जायेगा
बेवजह.
ये तो तेरे साथ हूँ , या फिर तेरे इन्तेज़ारी में
एक पल लम्हा शूंकु का, तो जाँ बेकरारी में
उफ़ दिवानेपन की इन्तेहाँ अब और क्या कुछ है?
न जाने ये रस्ते कहाँ लेके जायेंगे
न जाने कब खुद से नजर मिलाएंगे
दौर कैसा भी हो, सफर में मोड़ जैसे भी
बिन तेरे अब तो नहीं जी पाएंगे
यकीं इतना रहे तू मुस्कराता है
ख़यालो में मेरे यूँ डगमगाता है
पुकारू जो मैं खयालो में भी
सब कुछ छोड़, तू भाग आता है
नहीं इतनी मुहब्बत
के भी काबिल तुम नहीं
नहीं मेरी जिंदगी में
थे भी शामिल तुम नहीं
मैं रख लूँ शौक से
जितना सा भेजा है
तोहफ़े कम है क्या?
बस एक, हासिल तुम नहीं
तू अपनी बोली में यु ही मुझको भिगोता जाए
तू नश्तर अपनी निगाहों के बस चुभोता जाए
जहाँ को एक पल भनक भी ना पड़े श्याम
मैं तेरी दीवानी मीरा और तू मेरा होता जाए
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