मुझे माफ़ ही कीजिये 

क्युकी 

इधर मुहब्बत हुयी 

और उधर दिल टूटा 


जो डरते रहे हम 

डराते रहे वो 

हारते रहे हम 

हराते रहे वो 


न पिघलता आग में 

तो सोना निखरता कैसे?

न चोट पड़ती अनगिनत 

तो हीरा दमकता कैसे 

न उम्र भर को टंगता 

यूं ही कहीं आस्मां में 

तो अँधेरी रात में रोशन 

भला चाँद, चमकता कैसे 




तुमने ही छूकर अब अनछुआ किया है 

तो अब देखकर भी अनदेखा करेंगे 


हर बात में भी जब कई सी बाते हो 

होकर भी न हुयी जो मुलाकाते हो 

भींगी हैं इश्क़ में मेरी गीली साँसे भी 

हर सलवटों में अब तेरी ही रातें हो 



अब हथेली भर को मुझे चाहत दे दो 

उम्र भर  

मुझे जाने की इज़ाज़त दे दो 





मुहब्बत उनसे न हुयी 

खुद से हो गयी 

जिस्म कहीं भी जले, मुलाकात 

रूह से हो गयी 


किस तरह अब वो झुठलाए 

हमारा सुलगना उनके सीने में 

अब तो कायनात सांस लेती है 

बस हमारे इश्क़ के होने में 


यूँ उलझाकर के बातों में कहो

कहा ले जाने का इरादा है 

बस अब लौट कर न जाओ  

क्या दिल से इतना सा वादा है? 


ख्यालो में एहसासों में और इन लब्ज़ो में भी तुम 

बिखरे हुए सम्हले हुए ख़ामोश जज़्बों में भी तुम 

धड़कते हो सीने में और बहते हो रगों में भी 

देखकर तुम्हे बेकाबू हुयी, मेरी नब्जों में भी तुम 



कैसी होती है तन्हाईयाँ भला 

बस वो जानते हैं या फिर हम 

जब आईने में खुद को ढूंढते हैं 

होते हैं ज्यादा वो, हमीं कम 



रंग रंग रंग रंग 

भीतर भी बाहर भी 





मिलावट में प्रेम नहीं करते हम 

पर शुद्धता की गारंटी अकेले कैसे ले?

प्रेम भी फिर अकेले ही करना होगा। 



तुम्हारी नींद में सुनती हूँ

मैं जागकर साँसे 

मुझे यकीं देती है की 

हाँ, 

अब मेरी भी चल रही है 


अब और कौन सी तमन्ना कर लूँ , जो बाकी है 

तुम आ गए हो और जिंदगी मुकम्मल सी हो गयी. 


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