प्रेम है
कभी रूह से और कभी देह से तुम
बुला लेना और बता देना की प्रेम है
कभी रूठकर और कभी बहल कर
सता लेना और हंसा देना की प्रेम है
कभी पास रहकर कभी दूर जा कर
दिखा देना और देख लेना की प्रेम है
हूँ जिन्दा की मुर्दा कौन कहे देखकर
बस जान लेना की सांस है तो प्रेम है
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