हाँ, तुम्ही को
तुम
हाँ, तुम्ही को
और किसको?
और क्यों कहूँ
बस तुम जो समेट लो
तो मैं हर बार बिखरूँ
चुन लो तुम मेरे आँसू
गिर जाने से पहले
तुम्हारे अनकहे दर्द
हम हथेली में भरले
और बहा आए गंगा में
की बस इतना ही था
किसी ना दिन हमको
भी तो मिलना भी था
और बननी थी ये कहानी
जिसमे आदि है ना अंत
बस तुम हो बस मैं हूँ
मन में ख्वाहिशें अनंत
सब सौंप दूँ
जो समेट लो
तुम
हाँ, तुम्ही को
और किसको?
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