एक दराज में पड़ा पुराना खत मैं हूँ
देख ज़रा आईने में, आँखों में मैं हूँ
कभी छलकते हैं जो, नैनो से दिल के टुकड़े
देख सहेज उनको जो, शुकुन का सच मैं हूँ
दूर सही मंजिल पर , रस्ते तो हैं
नमी निगाहो में फिर भी, हस्ते तो हैं
उजड़ा उजड़ा सा क्यों न हो चमन यहाँ
एक दूजे के दिलो में हम, बसते तो हैं
मेरे लबो पे लब तुम्हारे हो, तो क्या हो
तेरी मुहब्बत मेरी रगो में, बहे तो क्या हो
एक लब्ज कैद है अर्सो से , इज़हार का
कही परिंदा दिल से उड़ जाए, तो क्या हो
कह दिया करती हैं आँखे हाले दिल
बस कोई पढ़ने को होना चाहिए
पुरे हो जाते हैं अरमा ख्वाब में
हर रात जी भर, इश्क, सोना चाहिए
हाँ हंसी हूँ मैं तो गुरुर क्यों न हो
है नशा ये इश्क का शुरुर क्यों न हो
जो नश्तर ही निगाहें और उनका दिल निशाने पर
खुदा खैर करे, फिर एक कसूर क्यों न हो
मुहब्बत है दीवानो सी
तो कह देना था कभी
हाय ये इंतज़ार की उम्र
तेरी ख़ामोशी से लम्बी
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