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Showing posts from December, 2015
ह्रदय में फांस नैनो में निराशा अधरों को शब्दों के न होने की हताशा पतझड़ के पत्तो सा यु गिरता साख से इतराकर पर सन्ता जा कीचड में ये अभागा फिर जाकर न सुनता किसी की न पूछता किसी से बदलते मौसमो का बहाना बनाकर कहाँ मेरे बस में कहाँ तेरे बस में ये किस्मत की डोरी न तेरी ना मेरी अनदेखे अनकहे कुछ सच भी होते हैं सीने को चीर बिछा के कुछ हमसे भी , सोते हैं करके कठोर इस मन को भर आँखों में अंगारे अनछुए जज्बात भी आँखों से बहते हैं तुम्हारा साथ नहीं मुझको अब आस नहीं मुझको तेरी यादो पे सर रख के चलो जी भर के रोते है
गलत उत्तर गलत उत्तर सारे के सारे प्रश्न के बुरी तरह फ़ैल तुम आज रिश्तो की मंच पे क्यों पुछे और कुछ जब तुम काबिल ही नहीं क्यों दिया जाय समय तुम्हे वक़्त का हासिल ही नहीं खुद की अदालत लगा के जब फैसले तुम करते हो कटघरे में खड़े होने निमंत्रण अब देते हो? कहु वही जो चाहो तुम छलनी ह्रदय, मुस्काऊँ भी? पाँव अब मैं पड़ती हु ये मेरे बस की बात नहीं माफ़ करो, माफ़ करो मेरी झोली में देने को मौके नहीं मर चुकी ममता मेरी तेरे खाने अब यहाँ कोई , धोखे नहीं