उज्जवल प्रभात
घनघोर घटायें कितनी हो कुछ बादल के आ जाने से होता न मलिन उज्जवल प्रभात नयनो में तुष्टि ह्रदय में आग ले , पथ प्रशस्त और तेज़ भाग हो शिव तुम्ही ब्रह्मा भी बनो भष्म ले लपेट सागर मंथन भी हो है संदेह कोई तो क्षण भर में फेक पीछे अब न मुड़ बढ़ , आगे देख