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Showing posts from October, 2018
हमारी   तुम्हारी   कहानी  कांफ्रेंस   रूम   से    प्रेजेंटेशन   ख़तम   करके   जब   मोबाइल   पर    नजर   डाली   तो देखा ,  ३ : १०   हो    गए .  मीटिंग   ३   तक   की   ही   थी ,  चलो   लगभग   समय   पर   ही हूँ .  वैसे   तो   कॉफ़ी   की   तलब   से   भी   आजकल   समय   का   अंदाजा   हो   जाया करता   है .  लैपटॉप   को   समेट   कर   अपने   ऑफिस   रूम    की   ओर   चल   दी .  पर कॉफी   की   जरूरत ने मुझे   कुछ देर    ब्रेक   रूम   में   रोक   लिया .  कॉफ़ी   मशीन को   स्टार्ट   कर   मैं   थोड़ी   देर   वही   दिवार   पर   टिक   कर,   आंखे   मूँद   खड़ी   हो गयी .  कॉफी   की ...
आवाहन की उमंग या विसर्जन का रोमांच? महिषासुर मर्दिनी के उच्चारण से अनायास ही रोम रोम में भर जाने वाली ऊर्जा या पंडालों की आप धापी में खो जाना खुद को ? माँ की सौ हिदायते पूजा की थाली को सजाने में या दोस्तों की लाखो मनुहार रात रात भर घूमने की? अगरबत्ती और दिए की खुशबु या राजू के फुचके का स्वाद ? मैं नहीं जानती, इनमे से मैं कौन हूँ और कौन नहीं. दुर्गा पूजा और मेरा घर, बरसो बाद भी मेरे अंदर उतनी ही तीब्रता से रचा बसा है जितना तब था. वरना , क्यों ये लिखते लिखते मेरे गले में गोले बन जाते और बिना वजह आखर पर धुंध फ़ैल जाती. माँ सर्वत्र है और वैसे ही है हमारा माँ के लिए स्नेह, सदैव. बस वही हूँ मैं. शारदियो सुभेच्छा। दुर्गे दुर्गे