हमारी तुम्हारी कहानी
कांफ्रेंस रूम से प्रेजेंटेशन ख़तम करके जब मोबाइल पर नजर डाली तोदेखा, ३:१० हो गए. मीटिंग ३ तक की ही थी, चलो लगभग समय पर हीहूँ. वैसे तो कॉफ़ी की तलब से भी आजकल समय का अंदाजा हो जायाकरता है. लैपटॉप को समेट कर अपने ऑफिस रूम की ओर चल दी. परकॉफी की जरूरत ने मुझे कुछ देर ब्रेक रूम में रोक लिया. कॉफ़ी मशीनको स्टार्ट कर मैं थोड़ी देर वही दिवार पर टिक कर, आंखे मूँद खड़ी होगयी. कॉफी की खुशबु से कमरा महक उठा था, और मैं भी दो घड़ीसुस्ताने लगी. मेरी फ़ोन बजने लगी. देखा तो माँ का कॉल आ रहा था. इतने देर ? अभी तो इंडिया में बड़ी रात हो गयी होगी. मैंने फ़ोन नहींउठाया। कॉफी लैपटॉप वगेरा लेकर अपने ऑफिस रूम तक पहुंची औरवापस कॉल किया माँ को.
"माँ, इतने देर जाग रही हो? "
"हाँ नींद नहीं आ रही."
"वो तो तुम्हारी पुरानी बीमारी है." मैंने कुछ उकताहट में कहा. अब तकमें मेरे मेलबॉक्स में ५-६ नए मेसज आ चुके हैं. माँ भी न, यु ही कभी भीकॉल कर देती है.
"अच्छा माँ, मैं तो ऑफिस में हूँ. और तुम भी सोने की कोशिश क्यों नहींकरती? फ़ोन पे रहोगी तो कैसे नींद आएगी भला?"
कहते कहते मैं, बॉस के मेल का ज़वाब लिखने लगी. और देखा तो माँअभी फ़ोन पर ही थी.
"माँ?"
"हाँ"
क्या हुआ?
"देखो न, कल दिवाली है. तुमको छुट्टी नहीं है क्या?"
"नहीं". अब तो सच में मुझे झल्लाहट सी हो गयी. बीस साल हो गए मुझेघर और देश छोड़े , न जाने सब क्यों भूल जाते हैं की अमेरिका मेंदिवाली नहीं मनाई जाती.
"ओह , हाँ. देखो न दिमाग जैसे काम नहीं करता. कुछ याद रहता"
"हाँ... अच्छा, मैं कल कॉल करूं ? अभी ज़रा काम है. "
"देखो न , अभी आँगन की तरफ जा रही थी.. चौखट , सीढ़ियां... सबकोरी ही हैं इस साल भी".
माँ की भर्रायी आवाज से,मेरी उँगलियाँ ठिठक गयी, और ग्लानि से मेरामन.
"क्यों? क्या हुआ?"
"तुम्हारा वो रानी कलर का लहंगा अभी देख रही थी। .. शायद बारहवींमें थी तुम तब. "
मेरे लैपटॉप की स्क्रीन अब धुंधला हो चुका था, और सामने दिख रहीथी एक १५-१६ साल की लड़की। नए लहंगे में इतराती, पूरे आँगन कोअल्पना और रंगोली से सजाती. ऐसा लगा जैसे मैं उसे कभी जानती थी. ऐसे लगा जैसे, मैं अभी उस आँगन में कही खड़ी हूँ.. दरवाजे की घंटीजोरो से बजती है और मैं खिन्नाकर उठती हूँ देखने की कौन आ गया जोकही मेरे रंगोली को बिगाड़ तो नहीं देगा.
और मेरी आंखे खुल जाती हैं, कॉफ़ी मशीन में पड़ी ठंढी हो चुकी है. माँमुझे वैसे ही निहार रही है, मेरे फ़ोन के स्क्रीन वाली उसकी तस्वीर से. अब माँ जब तब फ़ोन नहीं कर पाती , जहाँ वो है वहां कनेक्शन नहींपहुँचता.
और हाँ, कल दिवाली भी तो है.
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