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Showing posts from September, 2016
क्या कहूँ इसको परेशानी या हैरानी पागलपन या दीवानगी भूख, नींद या प्यास अनिद्रा या एहसास? क्या कहूँ ऐसा जो पहले कहा नही गया लेकिन किसी भी एक शब्द से व्यर्थ ही वर्णन किया बेचैनी ये उदासी कभी भीगी हुई हँसी नही आसान नही मुश्किल जमाने भर की बिरानी मे फँसा दिल
मुश्किल सी राहो से अंजानी गलियो से गुज़रना भला लगता है आकर्षित करता है इनका अपना ना होना और खुद ही अपना बनाना जीत का एहसास प्रभावित करता है तब जब लगता है बड़ी लंबी है उम्र और यहाँ तो सब देख लिया है और वापस आ जाएँगे जब मन भर जाएगा मन भरते भरते वक़्त कटते कटते भूल जाती है राह वापस जाने की लौट कर घर आने की कोई जनता नही कोई पहचानता नही झुँड मे अपने से भटके लोगो की भटकते हैं हम राह ताकते हैं हम शाम के ढल जाने की अंधेरो मे गुम जाने की दुआ माँगते है अब सुबह फिर से न आने की

कलकत्ता शहर

कलकत्ता शहर   एक अनूठा   शहर  ,    जो इश्क की बुनियाद को बुनियाद   की तरह सहेज कर अपने दिल में , सदियो जवान रह सकता   है . , इसके आगे कहाँ टिकेगा आगरे का ताजमहल। एक मुर्दा हुए   मुहब्बत   पर आंसू बहाते आशिक की आखिरी श्रधांजलि ? कोलकाता में मकबरे नहीं   बनते क्योंकि इश्क़ मरता ही   कहाँ है ?   वो तो बहता है शहर की रगो में बनकर हूगली का   पानी और लोग खुद ही कश्तियाँ बनाकर पार लग जाते   हैं।   जिनकी नाव टूट भी जाये    वो ' ओ रे मांझी '   को आवाज लगा मस्त   हो गोते खा लेते हैं इन लहरो में . क्योंकि जानते है   सबकी मंजिल   गंगा सागर   ही है . कही भटक   भी गए तो सुंदरवन के    जंगल कौन से   बुरे हैं ? रविन्द्र   के संगीत से लेकर नज़रुल की गीति   तक , सबके सब सदियो से अब तक ग्रसित है इस प्रेम के रोग से जो परे है   भौतिक आडम्बरो के , जीवन मृत्यु के चक्करो से और समय   की गति से . यहां जो किसी ने कहानी लिख   डाली , किसी पेड़ की डाल पर या मैदान की

कलकत्ता शहर

कलकत्ता शहर     एक अनूठा   शहर  ,    जो इश्क की बुनियाद को बुनियाद   की तरह सहेज कर अपने दिल में , सदियो जवान रह सकता   है . , इसके आगे कहाँ टिकेगा आगरे का ताजमहल। एक मुर्दा हुए   मुहब्बत   पर आंसू बहाते आशिक की आखिरी श्रधांजलि ? कोलकाता में मकबरे नहीं   बनते क्योंकि इश्क़ मरता ही   कहाँ है ?   वो तो बहता है शहर की रगो में बनकर हूगली का   पानी और लोग खुद ही कश्तियाँ बनाकर पार लग जाते   हैं।   जिनकी नाव टूट भी जाये    वो ' ओ रे मांझी '   को आवाज लगा मस्त   हो गोते खा लेते हैं इन लहरो में . क्योंकि जानते है   सबकी मंजिल   गंगा सागर   ही है . कही भटक   भी गए तो सुंदरवन के    जंगल कौन से   बुरे हैं ?   रविन्द्र   के संगीत से लेकर नज़रुल की गीति   तक , सबके सब सदियो से अब तक ग्रसित है इस प्रेम के रोग से जो परे है   भौतिक आडम्बरो के , जीवन मृत्यु के चक्करो से और समय   की गति से . यहां जो किसी ने कहानी लिख   डाली , किसी पेड़ की डाल पर या मैदान क