दुर्गा पूजा और मेरा घर, कोलकाता. मेरे बचपन का घर, अल्हड़पन के दिन सब जैसे बिलकुल घनिष्ट हो इन दुर्गा पूजा के ही दिनों के. पंडालों का तिनका तिनका जुड़कर बढ़ना और स्कूल से आते जाने नापना कौन सा कितना रेडी हुआ. इंतज़ार एक एक दिन का और भगवती के आगमन से जैसे एक नयी जान ही फूंक जाया करती थी, हर उस चीज़ में जिसे मनुष्य प्रायः प्राणहीन समझता है.... सड़के गली मोहल्ले दीवार ... जिधर देखो सब जीवंत. सब की धड़कने गूंजती ढोल में , शंख में , घंटियों में ,उलू में या यदा कदा बाज़ारो के शोर में, सर्वत्र एक ही संगीत जैसे प्रकृति भी कह रही हो 'माँ एशेछेन ' ( माँ आ गयी हैं). माँ का आना अपने घर, अपने मायके आखिर क्यों कर कोई कसर बाकी रखे कोलकातावासी ....बेटियों के स्वागत में. जगतजननी भगवती के साथ, हर घर की हर भगवती को और उनके आगमन को पलके बिछाये हर व्यक्ति विशेष को मेरी ओर से 'शुभो विजया'.
मर्यादा
मीरा की छाती धौंकनी सी चल रही हैं, टांगो के बीच है फंसा एक यन्त्र और स्क्रीन पर नजरे टिकाये नर्स. जिसका डर है, वही बात है. मीरा की ही धड़कनो की एक प्रतध्वनि से कमरा गूँज उठा है. बधाई हो , बिलकुल नार्मल और हैल्थी प्रेगनेंसी है धड़कने और तेज़, गर्दन टेढ़ी कर स्क्रीन पर देखती है. एक काला धब्बा छोटा बड़ा हो रहा है , कुछ अंक इर्द गिर्द डूब उभर रहे हैं। कौन है ये ? इसको जीवन कहूँ या नहीं ? ह्रदय विचलित है और आंखे भर भर उलझ रही है। नर्स चुपचाप अपना काम कर रही है , उसकी तो दिनचर्या है। २ घंटे के बाद मीरा का नम्बर आया था , उसके पहले न जाने कितने और शरीर और कितनी और धड़कनो की चित्र आंक चुकी है आज ये मशीन. किर्र किर्र की आवाज और मीरा के हाथ में एक तस्वीर थमा देती है. मीरा अनायास उसे ले लेती है. अब आप चेंज कर लीजिये और डॉक्टर से मिल लीजिये। मशीन अब नहीं है टांगी के बीच लेकिन और भी बहुत कुछ तो है ? क्या करूँ ? कैसे कहूँ ? उसने तो कह ही दिया था, उसी दिन. " जाओ देख लो, जो करना है. " इको होती रहती हो वो ठंढी आवाज और उसका किया एक फैसला मीरा के ज़ेहन में.. " मुझे ये प्रेगनेंसी टर
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