कालेज का पहला दिन
कालेज का पहला दिन, और अमय पहले ही लेट हो गया था। बस आ ही नहीं रही थी.
जैसे तैसे रूटीन को समझ और कॉरिडोर में लगभग भागते भागते अपनी पहली क्लास तक पहुंचा. इससे पहले की वो क्लास में घुसता, अंदर से आ रही किसी के गाने की आवाज ने जैसे उसके दोनों पैरों को जंजीरों में जकड दिया. सबकुछ जैसे धुंधला हो गया और उसे सिर्फ एक मीठी से आज में कोई गाता हुआ सुनाई दे रहा था.
किस लिए मैंने प्यार क्या, दिल को यु ही बेकरार किया। .. शाम सबेरे तेरी राह देखी , रात दिन इंतज़ार किया.
अमय को कोई अंदाजा नहीं था की ऐसे शुरू होगी उसकी पहली क्लास.
धुंध थोड़ा छंटा , एक सांस आयी और गयी. जब उसने खुद को सम्हाला तो सामने देखा गहरे नीले रंग के सूट में एक छोटे कद वाली लड़की जमीन पर नज़रे गड़ाए , ये गाना गा रही थी. खिड़की से छन कर आने वाली धूप सीधी उसके चेहरे पर थी और उसके घुंघराले बालो की दो चोटियों में, साक्षात सरस्वती की प्रतिमा लग रही थी.
न जाने क्यों ऐसा लगा जैसे, उसकी रूह भी क्या इसी पल को ढूंढ रही थी. और वो टकटकी लगाए देखता गया, इस प्रतीक्षा में भी की , ये नजरे उठाये टी पूरा चेहरा देख सकूं.
इतने देर में एक कड़क सी आवाज आयी.
वेलकम जूनियर , पहले ही दिन लेट?
बेंच और ब्लैक बोर्ड के सामने कमर पर हाथ रखे किसी सीनियर की आवाज थी ये. उसके बोलने पर क्लास के पीछे से भी कुछ ठहाके लगे. अमय ने देखा और समझ गया , ये रैगिंग पीरियड चल रहा है. गाने की आवाज भी रुक गयी.
अबे , तुझे गाने को मना किया था क्या? कंटिन्यू प्लीज
एक बार और हंसी गुंजी और साथ में गाने फिर शुरू हो गया. लेकिन अब तो जमीन पे नजरे नहीं टिकाये हुए थी, अब वो कभी खिड़की, कभी सीनियर और एक बार कनखियों से अमय की ओर भी देखा, शायद उसने.
" प्यार में धोखा न खा जाये , ये मन सीधा साधा, ऐसा न हो झूठा निकले आज वादा "
एक सीनियर के इशारे पे अमय अब अंदर आकर दूसरी बेंच पर बैठ गया है। मुंह लटकाये कुछ २०-२२ और बैठे है जिनके चेहरे पर ही साफ़ साफ़ लिखा है की आज इनका इस कॉलेज में पहला दिन है.
गाना ख़तम हो चूका है, नीली सूट वाली देख रही है चुपचाप सीनियर की ओर, शायद ये जानने के लिए की "अब क्या".
सब सीनियर तालियां बजाते हैं और इशारा करते हैं की वो भी बैठ जाए.
वो अमय के ठीक सामने वाली सीट पर बैठती है।
अभी तक अमय जैसे इस नीले जोन ही कहीं भटक रहा है , तभी वो नीली सूट अपनी एक चोटी को पीछे अपनी पीठ पर फेंकती है. अमय के चेहरे को छूकर वो लम्बी चोटी लहरा कर ठहर जाती है उसकी पीठ पर.
"ओह सॉरी. " - पलट कर कहती है.
"नो प्रॉब्लम. " - बिना पलक झपकाए अमय कहता है
इतने में ही एक सीनियर आकर पकड़ लेता है अमय का कन्धा।
"बड़े स्मार्ट जूनियर आये हैं इस साल लगता है, पहले ही दिन से "ये रेशमी जुल्फे"? क्यों जनाब?"
नीली सूट का चेहरा एक ही पल में हलके गुलाबी से टुस्स लाल हो जाता है और वो नज़रे गड़ाकर अपने जगह पे ही बैठी रहती है।
अमय सांस रोके, सीनियर की ओर देख रहा है और शायद डर भी रहा है की अब इससे न जाने वो क्या कराएँगे।
"नाम क्या है"
"अमय"
"अमय? अमय... अमय... अमय। .. कभी समय पे आया करो यार"
सीनियर्स का झुण्ड फिर ठहाके लगता है , और इसके पहले की अमय को खींच कर बेंच से निकाल पाए आधी क्लास सरसराकर खड़ी हो जाती है। दरवाजे पर जोर से अपने डस्टर से नक् करती हुयी कड़कती हुयी एक आवाज पुरे क्लास को गूंजा देती है। अब तक सभी खड़े हो गए हैं अपने अपने जगह पर.
"क्या हो रहा है यहाँ?"
"माम् वो, हम थोड़ा इंट्रोडक्शन के लिए आये थे वो पहला दिन है तो तकलीफ न हो क्लास वगेरा... बस वही माम् और तो कुछ नहीं."
माम् पुरे क्लास को स्कैन करती है और यक़ीनन माजरा भांप लेती है।
"बहुत अच्छी बात है लेकिन अब मेरी क्लास है इसलिए आप सब प्लीज यहाँ से जाने की तकलीफ करेंगे? मैं भी तो जानूं मेरी क्लास में कौन हैं".
एक एक करके सब क्लास से निकलते हैं और हम सब गहरी राहत की सांस लेते हैं.
माम् सबके जाने के बाद बोर्ड पर अपना नाम लिखती है, और हम सब को देखते हुए बोलती है,
"मैं की मीनाक्षी कृष्णन , आप सब की इंग्लिश टीचर.... वैसे वो गाना कौन गा रहा था , मैंने आते हुयी कॉरिडोर में सुनी. "
नीली सूट एकदम जैसे चहक के खड़ी हो जाती है, हाथ ऊपर करके।
"जी मैं. "
क्लास में सबकी नजरे अब उसपर टिकी हुयी है , अमय को ये थोड़ा अच्छा और थोड़ा बुरा सा लग रहा था, पता नहीं क्यों. लेकिन जब उसकी नजर , नीली सूट के चेहरे पर बिछी हुयी हंसी पर पड़ी तो जैसे एकबार फिर वो सब भूल के देखता ही रहा गया. एक चोटी उसकी सामने अभी भी झूल रही है , दूसरी पीछे। सूक्ष्म तंतुओ जैसे बालो से घिरा हुआ है उसका चेहरा इस धूप में जैसे सोने की लत मालूम हो रही है.
"बहुत अच्छा गाती हो तुम , नाम क्या है तुम्हारा "
"जी, श्रुति."
श्रुति ... श्रुति ... श्रुति
कई बार मन ही मन दुहराकर , अपनी नयी कॉपी पर पिछले पन्ने में लिख कर रख लेता है अमय. ऐसे सहेज कर जैसे, कहीं भूल न जाए.
उसके भोले मन को ये नहीं पता की ये नाम अब जहाँ उसने आंक लिया है , वो क्या खुद मौत भी आकर नहीं मिटा पायेगी।
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