अच्छा सा लगता है और जी करता है बस सुना करूँ न बोलूं न सोचूँ न हाँ हो, न ना हो झूलते रहे लम्हे यही कही और बाते तुम्हारी ख़त्म न हो मुलाकातें ख़त्म न हो लेकिन आज, बस इतना ही.
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Showing posts from August, 2020
बस रौशनी
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कौन कहता है झरोखे से उम्मीदे आएंगी कौन कहता है किस्मतें, आके जगायेंगी कौन कहता है की, बनेगी तकदीर अपने आप कौन कहता है जो जानो, खबर करना जनाब हम तो लपेटे बदन से ख्वाब के चीथड़े शर्मशार से, खुद को बचाये बैठे हैं ये लम्बी रात जब तलक न कटेगी सुबह की देहरि पे, जां लुटाये बैठे है लगाकर टकटकी, करते है इंतज़ार की एक सुबह आये उसके आने से पहले, न कहीं आँख ये छलक जाए बस रौशनी देखनी है मुझको जी भर के खुदा अब तो सबकुछ गवाए बैठे हैं
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दुर्गा कब तलक बस घोषणा होगी यहाँ संग्राम की कब तलक चिंता करोगी बैठी यहाँ परिणाम की कब तलक बजती रहेंगी दुदुंभिया, इस ओर से , उस ओर से कब तलक प्रतिशोध की ज्वालायें धधके, जोर से कब तलक करती रहोगी प्रार्थना और अर्चना कब तलक उम्मीद से टल जाएगी यह वेदना अब बस हुआ, अब नहीं है कोई रास्ता वापसी अब नहीं, अब नहीं कोई ये मामला आपसी अब नहीं है डूबती नैया कोई मझधार में देख ले, जीवन प्रतीक्षा कर रहा , उस पार में नाव खेनी तो पड़ेगी हैं काटना भी सर्प सर एक बार तो अब, आज अपने भी हठ पर गर्व कर विश्वाश रख कोई नहीं जो लड़ सके तेरे कर्त्वय से है ये पृथ्वी कांपती जो तू आ जाये, अपने सत्य पे कैसी माया और कैसा मोह अब किस बात का साँच को अब आंच नहीं अब अंत है इस रात का है तुम्हारे हाथ में ही तेरी किस्मत जान ले प्रेम तुमने बहुत दिया जा, महिषासुर की प्राण ले उस दैत्य के अब प्राण ले