कैसे बनके बदली बरस जाना चाहती हूँ तेरी आशिकी पी कर तरस जाना चाहती हूँ क्यों तू चुभता है अभी तक सीने में खंजर सा दर्दे इश्क़ की चिता में सुलग जाना चाहती हूँ
मेरी उंगलियों को अभी भी तेरा अक्स याद है थी कभी जिससे मुहब्बत वो शख़्स याद है गुजरती है, गुजरेगी। तमाम उम्र बस यु ही तू न सही, तनहा राह की हमसफ़र याद है
प्रेम बिकता है तो विरह भी तो बिकता है यहाँ नहीं बिकती है तो बस जीने की आरजुएं यहाँ वो मिल गए थे अच्छा बिछड़े तो और भी बेहतर ख्याब बिछड़ो के मिलाने के जनाब! बेहाल और बदतर