"जाने अनजाने, चाहे अनचाहे  जीवन में ऐसे मोड़ आ ही जाते है जहाँ पे आपको एक रास्ता चुन ही लेना पड़ता है. हम तो कई बार चाहते है की बस उसी मोड़ पर जिंदगी खत्म हो जाए, हमें चुनना न पड़े कुछ भी लेकिन ये हमारे बस में नहीं होता। जिंदगी और राह हमें चुनती है , हम नहीं चुनते उनको. हम बस इतना चुन सकते है की हम उस राह पर कैसे चल रहे है. छलांगे लगाते , हँसते खिलखिलाते या कदमो को घसीटते , बोझ ढोते , कराहते ? कराहना मेरी फितरत में नहीं, दर्द कितना भी गहरा क्यों न हो. दर्द को नासूर न बनाकर उसे जीवन का एक तोहफा समझ अपनाकर आगे बढ़ जाना ही जानती हूँ मैं. "


मीरा कहे जा रही है लेकिन कोई सुन नहीं रहा. सब उठकर जा चुके हैं खाने के टेबल के पास, शायद उसकी  बाते थी ही ऐसी. वाइन का आधा गिलास हाथ में है , नज़रे उमस भरी शाम में ढलते सूरज पर. सोचने वाली बात है न की सूरज डूब भी रहा होता है तो इतनी लालिमा भर देता है आसमान के आँचल में. फिर क्यों नहीं भरता मेरे इस मन का खालीपन? 


खैर. अब पार्टी के माहौल में मैं भी ऐसी बकवास ले बैठूंगी तो कौन सी अक्लमंदी वाली बात है भला. मिसेस सिंह की पन्द्रवीं सालगिरह है आज. इतना इंतेज़ाम किया गया है , कम्युनिटी हॉल , ग्राउंड सब की रिजर्वेशन, खान पान का भव्य इंतज़ाम. सुना है बेली डांसर भी आने वाली है।  खुशहाल दाम्पत्य जीवन के कई अनमोल लम्ह जो कैमरे में कैद थे, प्रोजेक्टर पे चलाये जा रहे है. कितनी ही तस्वीरें , शादी से लेकर सालगिरह, संग बिताये तीज त्योहार , बच्चों के जन्म और कई पड़ाव। अब पंद्रह बरस कुछ कम तो नहीं होते। मीरा वही से चुपचाप तस्वीरें देखे जा रही है. 


बड़े बच्चे एक कोने में अपना झुण्ड बनाये बातो में मसगूल है तो छोटे बच्चे दूसरे कोने में. 


इस माहौल में मीरा की ऐसी बातो को सुनने का मूड क्यों हो भला किसी को.थोड़े ही दूर में पानीपुरी के स्टाल पर पल्लो और गुड्डो को देखती है.  चुपचाप उठकर चल देती है, अभी चार गज़ दूर ही होगी मीरा की, अपना नाम सुन कर ठिठक कर खड़ी हो जाती है. 


"अरी गुड्डो , तुमने भी सुनी क्या मीरा की जीवन व्याख्या" - पल्लो एक हाथ मुंह पर रखे , ठिठोली और व्यङ्ग के अंदाज में कहे जाती है। 

"दो गिलास अंदर जाता है और जीवन का सार बाहर , मुझे तो लगता है दिमाग सटक गया है इसका, बेचारा पति न जाने कैसे झेलता है, बड़े भले इंसान है वो तो" 


ठिठोली और हंसी की वह आवाज, एक एक कर तीर की तरह पड़ते है कलेजे पर. पक्की सहेली? 


खैर. 


अपना सर झटकती हुयी मीरा , गिलास में बची हुयी  वाइन की एक घूँट लॉन की घास पर ढरका देती है. उलटे पांव वापस अपनी कुर्सी पे आ बैठती है. न , अब कुछ नहीं बोलूंगी. सच में , क्या क्या बोलने लगती हूँ मैं भी. ठीक ही तो कह रही थी वो. ये भी कोई माहौल, जगह और लोग हैं ये सब फ़लसफ़ा लेकर बैठने की. मुझे भी क्या सूझता है. 


दो- चार मिनट यु ही बीत जाते है. 


डी जे ने डांस फ्लोर ओपन कर दिया है. पल्लो भागते हुए आती है, अरे मीरा चलो तो सही. चलो न, कुछ डांस करे. 


मीरा अनमनी सी उठकर चल देती है. शायद यही बेहतर है, की मैं सबके साथ उनके हिसाब से अपने बर्ताव को बना कर रखूँ. 


अभी मिसेस और मिस्टर सिंह कोई कपल डांस करने वाले है. बड़ा सुन्दर परफॉरमेंस हुआ दोनों का, लगता है एक महीने से प्रैक्टिस की थी दोनों ने, ऐसा गुड्डो का कहना है. ड्रेसेस भी बदल कर आये दोनों, कुछ बड़े डिज़ाइनर ने उनके लिए स्पेशल बनाया है ऐसा प्रीतो दी का कहना था . फिर उनकी बेटियों ने भी मिलकर डांस किया। बड़ी प्यारी सी बेटियां है दोनों , बड़ी वाली इस साल कॉलेज जा रही है और छोटी अभी आठवीं में हैं. वो बहने लाड़ली है अपने माँ बाप की. माहौल खुशनुमा सा हो गया , सारे बच्चे एकसाथ डांस करने लगे. 

मीरा को अंदाजा न लगा , कब वो भी सभी के साथ डांस फ्लोर पर पहुंच चुकी थी. उसे डांस बड़ा पसंद है, म्यूजिक हो और दोस्त फिर तो वो रोक ही नहीं सकती अपने आप को. और आज तो सभी है.

कई बार उसका ध्यान गया की, उसका पति उसे आंखे तरेर कर देख भी रहा है. लेकिन वो सब अनदेखा कर के, मीरा तीन गानों पर अपनी सखियों के साथ थिरकती रही।  

अब ऐसे मौके बार बार कहाँ आते हैं और जो सुनना है वो तो सुनना ही है, अभी तो डांस कर लूँ.

लेकिन अब तक मीरा का दिल धीरे धीरे कांपने सा लगता है , और जानती है की अब चलना चाहिए। स्टेज से सीधी उतर कर चल पड़ती है, अपने बच्चों को समेटकर बढ़  जाती है. 

"हर जगह नाचना शुरू हो जाता है तुम्हारा" 


कटाक्ष कानो में एसिड की तरह गिरता है, लेकिन इसमें नया क्या है सोचकर मीरा सर झुकाये चल रही है बस. 


"अरे, मेरा शाल रह गया. " जवाब का इंतज़ार न करके मीरा पलट जाती है अपनी कुर्सी पे शाल जो वो पार्टी में भूल गयी थी. 


"कुछ न कुछ भूल ही जाती हो हर जगह, अब शाल के बहाने लटक मत जाना वही". 

 

दबे कदमो से मीरा अपनी कुर्सी वाली जगह पर आती  हैं।  झुण्ड बनाकर जरा ही दूर पर प्रीतो, रितु और पल्लो शायद आइसक्रीम खा रहे है. कही कोई देख न ले और बाते न करने लगे, मीरा धीरे से शाल उठा तो लेती है लेकिन वापस लौटते उसके कदमो में जंजीर से डाल देते है ये शब्द. 


" चली गयी क्या वो? हाँ। ....  हर पार्टी में नाचने तो लगती है , लेकिन बदन में लचक नहीं है जरा भी" 


जंजीर घसीटते तेज़ कदमों से मीरा वापस चल तो देती है लेकिन उसका कुछ विश्वास , कुछ अनुराग, कुछ प्रेम, कुछ दोस्ती, कई रिश्ते  उसी लॉन पर धवस्त भी हो कर रह जाती है. 

बस आज की रात निकल जाए , कल सब ठीक हो जायेगा। 

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