Posts

Showing posts from August, 2021

प्रेम - तलाश ख़त्म

 "गोरे बदन पे, उंगली से मेरा , नाम अदा लिखना " - गुलज़ार  किसने लिखा , किसने पढ़ा और किसने समझा? अब कौन माथापच्ची करे इसमें। हम तो बस श्रेया घोषाल के अंदाज पर कुर्बान हो लिए और यकीं भी कर लिया की "रातें बुझाने तुम आ गए हो".  प्रेम - तलाश ख़त्म .  आज बड़े दिन बाद, इस कड़ी में एक और जोड़ देने का मन हो चला है.  क्यों? ऐसी कोई वजह नहीं है मेरे पास आज देने को. और आपको भी, आम खाने से मतलब होना चाहिए न की पेड़ गिनने से. पिछले साल की मई के बाद , नहीं लिख पायी थी कोई और कड़ी. जैसे जंजीरो से ही रिश्ता तोड़ लिया हो मैंने. लेकिन अब ऐसा लगता है, मेरे अनदेखे कर भी देने से ये जंजीरे मुझे अकेला नहीं छोड़ेंगी.  और फिर ये ख्याल आया की इंसान जंजीरो में पड़े रहने को ही तो कही प्रेम नहीं कहता हैं?  न, जंजीर खुद प्रेम नहीं होता पर हमारी तीब्र आकांक्षा किसी न किसी जंजीर में बंधे रहने की और बाँध लेने की, कई बार प्रेम कहलायी चली जाती है.  हाँ, अब ये भी सच है की बिना प्रेम किसी को बाँध लेना, या बंध जाना संभव भी नहीं. लेकिन बस बंधे रहना भी तो प्रेम का हासिल नहीं। प्रेम, प्रतिष्ठा और प...
 जन्म  मेरा हुआ था  सिर्फ मेरे परिवार की लक्ष्मी बिटिया का नहीं  अरमान   कुछ मेरे भी थे  मेरे पूर्वजों के अधूरे वालों के अलावा भी  ह्रदय   मेरा अपना भी था  सिर्फ मंडप पर मेरे साथ खड़े पुरुष का ही नहीं  मर्यादा  मेरी भी थी  सिर्फ यदा कदा जुड़ते गए रिश्तों के ही नहीं  लेकिन दायित्व सपनों को स्वाहा करने ही   मर्यादाओं के उल्लंघनों की ह्रदय के छलनी हो टूटने की  और अरमान?  उन्हें मृतक घोषित करने की  सिर्फ मेरी अकेले की  सिर्फ और सिर्फ मेरी अपनी 

बिरयानी

 "कोशिश. हर कोई अपनी तरफ से पूरी ही करता है. मैंने की थी तो तुमने भी की ही होगी, अब न बनी तो न सही. " "क्या?" "बिरयानी, और क्या. " "क्या बात करती हो? बिरयानी न बनी तुमसे? कब से तो हांड़ी टांग रखी है तुमने. और वो जो खुशबु पुरे मोहल्ले में थी? सो क्या था भला. " "अरे बहन. खुश्बुओ का क्या है, आजकल बाजार में न हम फ्लेवर की अगरबत्ती मोमबत्ती या एयर फ्रेशनर मिल जाता है. तो बस. कभी मैं, कभी मेरे वो , वही छिड़क दिया करते थे. जब जब लोग गुज़रते थे. लेकिन बिरयानी तो कभी न बन सकी हम से. " " हमारे घर तो हर रोज़ बनती है. " थोड़ा ऐंठते हुये बोली पल्लो।  "अच्छा है बहन, अब शौख तो मुझे भी बहुत था. लेकिन क्या करे , सबके भाग तुम्हारे जैसे कहाँ होते है ".  "हाँ हाँ सो तो है, चलो कोई बात नहीं। अब तक जैसे मोमबत्ती , एयर फ्रेशनर से काम चलाया है , चला लो."  "न , मैंने तो हांड़ी ही फेंक दी".  ऐसा लगा जैसे पल्लो के सर पर ही फोड़ दिया हो।  "क्या बक रही हो? हांड़ी ही फोड़ दी, ऐसा अनर्थ कैसे कर दिया? चलो दिखाओ कहाँ हैं टुकड़े, सब जो...