बिरयानी

 "कोशिश. हर कोई अपनी तरफ से पूरी ही करता है. मैंने की थी तो तुमने भी की ही होगी, अब न बनी तो न सही. "

"क्या?"

"बिरयानी, और क्या. "

"क्या बात करती हो? बिरयानी न बनी तुमसे? कब से तो हांड़ी टांग रखी है तुमने. और वो जो खुशबु पुरे मोहल्ले में थी? सो क्या था भला. "

"अरे बहन. खुश्बुओ का क्या है, आजकल बाजार में न हम फ्लेवर की अगरबत्ती मोमबत्ती या एयर फ्रेशनर मिल जाता है. तो बस. कभी मैं, कभी मेरे वो , वही छिड़क दिया करते थे. जब जब लोग गुज़रते थे. लेकिन बिरयानी तो कभी न बन सकी हम से. "

" हमारे घर तो हर रोज़ बनती है. " थोड़ा ऐंठते हुये बोली पल्लो। 

"अच्छा है बहन, अब शौख तो मुझे भी बहुत था. लेकिन क्या करे , सबके भाग तुम्हारे जैसे कहाँ होते है ". 

"हाँ हाँ सो तो है, चलो कोई बात नहीं। अब तक जैसे मोमबत्ती , एयर फ्रेशनर से काम चलाया है , चला लो." 

"न , मैंने तो हांड़ी ही फेंक दी". 

ऐसा लगा जैसे पल्लो के सर पर ही फोड़ दिया हो। 

"क्या बक रही हो? हांड़ी ही फोड़ दी, ऐसा अनर्थ कैसे कर दिया? चलो दिखाओ कहाँ हैं टुकड़े, सब जोड़ती हूँ. सबको बुलाना पड़ेगा , क्या कर बैठी है ये. हे भगवन, "

मैं कब का सुनना बंद कर चुकी हूँ. हांड़ी फोड़ दी, सो फोड़ दी. और जोड़ तोड़ के काम चलने से अच्छा है, मैं न खाती न बनाती अब बिरयानी. 

लेकिन आँखे भर आयी है, माँ ने बड़े शौख से दी थी मुझे जब ब्याहा था. कहा था, मेरी बिटिया बड़ी गुनी है और घर आँगन मुहल्ला महकाये रखना। मुझसे न हुआ , न हुआ। 

"अब रो क्यों रही है, खुद ही किया न सब? अब भुगतो". 

कुछ परेशान और कुछ कुढ़ कर , पल्लो भी चल दी. 

शायद उसे उसके हांड़ी के दरार साफ़ दिख रहे थे , जोडने में इतनी माहिर है की अब ऐसे तो नहीं जतायेगी न. 

भगवन उसकी रसोई और रसोयी से आती खुशबु बरकरार रखे. 

मुझे तो अब कुछ और सोचना पड़ेगा, चलो फावड़े उठाऊँ और कुछ खेती बारी कर लूँ। 

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