वट सावित्री

 वट सावित्री

वैसे तो सावित्री और सत्यवान की कहानी सबको पता ही है , लेकिन किरण सोच रही थी की आजकल जब प्राण की रक्षा के लिए डॉक्टर हॉस्पिटल और साइंस है , क्यों करती है औरतें एक पेड़ के नीचे प्रार्थना. 


ऊपर से अमेरिका में तो इतनी गर्मी भी नहीं पड़ती इन दिनों में, की पति को पंखा झूला के कुछ ठंढक देना कोई काम की चीज़ हो.  और उपवास में सज धज कर दस और औरतों के साथ , क्यों?  मेमोरी के पन्ने पलटे तो देखा, भी मैं उनमे से एक थी तो जवाब तो उसके  पास भी होना चाहिए, तो उनमे से कुछ ऐसे कह डाले किरण ने 


१. मैंने अपनी माँ को देखा था, तो बस उन संस्कारो को जीवित रखना था. आखिर एक दिन हम औरते अपनी माँ जैसी ही तो बन जाती है? नहीं? 


२. हम औरते प्यार तो बहुत करती है लेकिन जब शब्दों की बात हो , कंजूसी कर जाती है. ऐसे में वटसावित्री और करवा चौथ जैसे मौके बहाने बन जाते है. एक दिन , सारा दिन मैं सिर्फ तुम्हारे लम्बी उम्र और स्वस्थ्य की कामना करुँगी, समय निकाल कर सवारूंगी श्रृंगार करुँगी , की तुम्हारी आँखों में वो प्रेम और कौतुहल देखूं जो शादी के मंडप पर देखा था। 


३. और ऐसे में मैं मेरी उन सखी सहेलियों को अपने संग कैसे न बांध लू? जिस प्रेम की डोरी में मैंने तुमको तुम्हारे परिवार और समाज सब को बांध रखा है, वोही नाजुक डोरी  मेरी बहने भी तो थामे बैठी है. तो फिर ? 


सभी को वटसावित्री की शुभकामनाये। 


Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

प्रेम - तलाश ख़त्म