जिंदगी मिली थी , आरज़ू थी प्यार उम्र्र भर परोसकर सजाएंगे , लम्हों की थालियों पर युँ तो शौक नहीं था कुछ , रसोईघर में टंगे रहने का पर , प्रेम का स्वाद चखा था , रिश्तों की प्यालियों पर र खती थी डायरी , लिखती थी हर एक नुस्खे की कभी ऐसे , कभी वैसे , बनाउंगी चखाऊंगी महक उठेगी मेरे आँगन से ऐसी मनमोहक की भूले हुए अपनों को भी , घर का रास्ता दिखाउंगी पर लगता है मैं भूल गयी संग रखना कुछ खास पैदा न कर सकी , वही रूप रंग वो एहसास न सीखा मैंने कैसे नियमित रखते हैं आंच व्यर्थ ही सखा मेरे ये अनवरत अर्थहीन प्रयास
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Showing posts from June, 2016
बिटिया
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सारा दोष तुम्हारा था माँ या फिर होगा पापा का नहीं सिखाई दुनियादारी ज्ञान दिया बस सपनो का नहीं कहा थी जली वो रोटी कहा न झाड़ू सही लगा हाथ में दी रंगो की कटोरी आँगन मेरे रंग से रंगा कहाँ कहा कह झूठ तू बेटी सच का जग में मोल नहीं जब तब कहते रहे ये मुझसे तू तो है अनमोल मेरी नहीं सिखाया आंकू दुनिया गहने जेवर और सोने से भर आती थी आँख तुम्हारी एक गुड़िया के रोने से क्यों रखा आँचल में बांधकर हर एक धुप से छाया दी कटुता संदेह भेद भाव न दिल में भर भर माया दी अब जाकर के सिखा सब कुछ जो सब पहले आना था देर हो गयी , घाव हो गए , मेरा मन हर तीर का निशाना था झूठ कहा करते थे तुम मेरी बातो से हिरे मोती झड़ते हैं मेरे शब्द तो मेरे ह्रदय में अब बासी होकर सड़ते हैं कहते थे तुम , बिटिया मेरी अद्भुत हो अनूठी हो ऐसा क्यों है , फिर मेरी दुनिया किस्मत मुझसे रूठी हो ? बाँध के गठरी संस्कार की , देकर धन
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ये जिंदगी बला है है आरज़ू दिलो में तो फिर गम का सिलसिला है जाहे जिस नज़र से तोलो , यार जिंदगी बला है बेकार सारे सिकवे गिले , बेकार हर फलसफा है न बने निगले और न उगले , ये जो जिंदगी बला है पल में रत्ती और पल में माशा , मजाक खूब भला है जो न आखिरी सांस तक टले , जिंदगी वो बला है जो खुंटे में अरसो से बंधे , तेरा भी , मेरा भी गला है अब कटे की तब कटे , की छूटे , ये जो हो चला है
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कुछ रिश्ते जितने करीब होते हैं ठीक उतने ही दूर भी यु तो मिलो का सफर साथ पर ओझल , आते एक मोड़ भी ये लगातार उम्र भर की भाग दौड़ कभी आगे कभी पीछे कभी यहाँ कभी वहां थक बैठ जाते जब सब कुछ हार न जाने तुम्हे पाते , कैसे करीब वहां और ऐसा लगता की अर्से लम्हे से थे और हैं अर्से लम्हों से कम पास भी ही तो हो आँखों में आंसू और खोये हुए भी हो आँखे नम