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Showing posts from April, 2018
आज इन कुहासे के मौसमों में जहाँ न धूप उगती है न ही हो जाता है घुप्प अँधेरा जैसे जवाबो के इंतज़ार में बैठे है  टकटकी लगाए और नहीं मिलता अंदेसा की निखरे या बिखरे? मिट्टी गर्भ में धारण किये बीज कोपले सकपकायी सी भ्रमित सखी, बस ऐसे ही कुछ तुम भी मैं भी
তোমাকে চোখের সামনে পেয়ে  অনেক কিছুই যে বলে ফেললাম  পরে দেখা হোক বা না হোক  কে জানে  তবুও কেন যে কত কিছু বলার রয়ে গেলো কুলবুল যে করে কেন নিরন্তর  কে জানে 
रंगमंच ये  रंगमंच है  पर्दा उठता है  गिरता है  कौन लिखता है ,  कौन जाने  कौन देखता है,  कौन जाने  बस आते  और जाते हैं  किरदार  एक से बढ़  एक कलाकार  किसी को पता है  उसका पात्र  किसी को नहीं  कोई नक़ल कर कर के ही  निभा जाता है  तो कोई टिक कर  अपनाता है  कभी यु भी होता है  की कोई, मंच से  भाग खड़ा होता है  रंगमंच है, ये रंगमच  तमाषा तो बस  चलता ही रहता है  किरदार नए  या पुराने  कौन देखता है  कौन जाने
शिव रात्रि है आज , सोशल मीडिया पे बहुत सारे सन्देश आ रहे हैं पिछले कई दिनों से. मैंने आज व्रत नहीं रखा , पिछले कई सालो से नहीं  किया. घर पर शिवलिंग है, कभी किसी ने उपहार दिया था.हर रोज़ उसपर जल भी नहीं चढ़ता।क्या शिव क्रोधित हो जायेंगे मुझपर? क्या मैं भयभीत हो  जाऊं और शीघ्र क्षमा प्रार्थना करून? आज महा शिवरात्रि है, शायद क्षमा मिल भी जाये. पर बात ये भी तो है की कही दिन ग्लानि में व्यर्थ ही न हो जाये. क्यों  न मैं ये समय शिव चिंतन में ही लगा दूँ।  जो मुझे जानते हैं उन्हें स्वतः ही ये ज्ञान हो गया होगा की मैं कदापि क्षमा ग्लानि और शोक में एक क्षण भी न व्यर्थ करू. जीवन अति बहुमूल्य है और शिव सर्वत्र विद्यमान अंतर्यामी और सर्वद्रष्टा। तो फिर शिव क्या है?मेरे  शिव हैं , मेरे अंदर समाहित सदैव रहने वाले आत्मिक ऊर्जा के कण. दुःख शोक और अपमान में कोलाहल करने  की क्षमता और भय के परे रख विनाश कर के नव निर्माण  प्रसस्त करने का आश्वाशन हैं शिव. नृत्य संगीत में अभिवयक्ति ढूँढ़ते , कंठ में विष को समेटे , सर्प और भूत प्रेतों को भी मित्रता का  पात्र मान ग्रहण कर...
आओ ज़रा रंग तुम्हे  हम भी लगा ले  झोली में मेरे जो है  उसी से तुम्हे सजा दे  लाल हरे नीले पीले  सुख दुःख सुलह शिकायते  मनुहार कुछ, कुछ झिड़किया  कुछ उलझी सुलझी बाते  आओ की अब होली कहाँ  हर रोज़ होती है  आओ की बेरंग रहने को  जिंदगी महंगी है
मार हथौड़ी मार हथौड़ी मार हथौड़ी एक रिश्तो को क्या पूछना भाई, चल खिड़की से फेक चल खिड़की से फेक, कही वापस ना आए बंद करो हर दरवाजे, रखो दूर ही साए
हम तो जीवन के पोटली में प्रेम के टुकड़े बाँधने को निकल पड़े, जी निकल पड़े अब कोई भी कुछ भी बोले क्या मुश्किल होl कोई क्या सोचे निकल पड़े, जी निकल पड़े उम्मीद नहीं कोई आस नहीं इस दरिया में अब प्यास नहीं बस एक राह सीधी घर को हम न ठिठके , अब चल पड़े अब सिचेंगे अब बरसेंगे अब आँगन आँगन थिरकेंगे अब मुस्काने, अब दीवाने मन की करने विकल बड़े